Tuesday, May 23, 2017

यमुना नाला नदी कब बन सकेगी डा. राधेश्याम द्विवेदी



यमुना भारत की गंगा नदी की सबसे बड़ी सहायक नदी है जो यह यमुनोत्री (उत्तरकाशी से 30 किमी उत्तर, गढ़वाल में) नामक जगह से निकलती है और प्रयाग (इलाहाबाद) में गंगा से मिल जाती है। इसकी प्रमुख सहायक नदियों में चम्बल, सेंगर, छोटी सिन्ध, बतवा और केन उल्लेखनीय हैं। आज इसे यदि नदी के रुप में खोजेंगे तो शायद ही यह मिल सके।आज यह एक नाला मात्र बन कर रह गयी है । यमुना के तटवर्ती नगरों में  दिल्ली और आगरा के अतिरिक्त इटावा, काल्पी, हमीरपुर और प्रयाग मुख्य है। प्रयाग में यमुना एक विशाल नदी के रूप में प्रस्तुत होती है और वहाँ के प्रसिद्ध ऐतिहासिक किले के नीचे गंगा में मिल जाती है। ब्रज की संस्कृति में यमुना का महत्वपूर्ण स्थान है। वर्तमान समय में सहारनपुर जिले के फैजाबाद गाँव के निकट मैदान में आने पर यह आगे 65 मील तक बढ़ती हुई हरियाणा के अम्बाला और करनाल जिलों को उत्तर प्रदेश के सहारनपुर और मुजफ्फरनगर जिलों से अलग करती है। इस भू-भाग में इसमें मस्कर्रा, कठ, हिंडन और सबी नामक नदियाँ मिलती हैं, जिनके कारण इसका आकार बहुत बढ़ जाता है। मैदान में आते ही इससे पूर्वी यमुना नहर और पश्चिमी नहर निकाली जाती हैं। ये दोनों नहरें यमुना से पानी लेकर इस भू-भाग की सैकड़ों मील धरती को हरा-भरा और उपज सम्पन्न बना देती हैं।
इस भू-भाग में यमुना की धारा के दोनों ओर पंजाब और उत्तर प्रदेश के कई छोटे बड़े नगरों की सीमाएँ हैं, किन्तु इसके ठीक तट पर बसा हुआ सबसे प्राचीन और पहला नगर दिल्ली है, जो लम्बे समय से भारत की राजधानी है। दिल्ली के लाखों नर-नारियों की आवश्यकता की पूर्ति करते हुए और वहाँ की ढेरों गंदगी को बहाती हुई यह ओखला नामक स्थान पर पहुँचती है। यहाँ पर इस पर एक बड़ा बांध बांधा गया है जिससे नदी की धारा पूरी तरह नियंत्रित कर ली गयी है। इसी बांध से आगरा नहर निकलती है, जो हरियाणा, दिल्ली और उत्तर प्रदेश की सैकड़ों मील भूमि को सिंचित करती है। दिल्ली से आगे यह हरियाणा और उत्तर प्रदेश की सीमा बनाती हुई तथा हरियाणा के फरीदाबाद जिले को उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद जिले से अलग करती हुई उत्तर प्रदेश में प्रवाहित होने लगती है। सादाबाद तहसील के मंदौर ग्राम के पास यह आगरा जिले में प्रवेश करती है। वहाँ इसमें करबन और गंभीर नामक नदियां आकर मिलती हैं।
आगरा जिले में प्रवेश करने पर नगला अकोस के पास इसके पानी से निर्मित कीठम झील है, जो सैलानियों के लिये बड़ी आकर्षक है। कीठम से रुनकता तक यमुना के किनारे एक संरक्षित वनखंड का निर्माण किया गया है, जो 'सूरदास वन' कहलाता है। रुनकता के समीप ही यमुना तट पर गऊघाट का वह प्राचीन धार्मिक स्थल है, जहाँ महात्मा सूरदास ने 12 वर्षों तक निवास किया था और जहाँ उन्होंने महाप्रभु बल्लभाचार्य से दीक्षा ली थी। यमुना के तटवर्ती स्थानों में दिल्ली के बाद सर्वाधिक बड़ा नगर आगरा ही है। यह एक प्रसिद्ध ऐतिहासिक, व्यापारिक एंव पर्यटन स्थल है, जो मुगल सम्राटों की राजधानी भी रह चुका है। यह यमुना तट से काफी ऊँचाई पर बसा हुआ है - यमुना दिल्ली के पूर्वी भाग में बहती है, उत्तर से दक्षिण की तरफ़। यहाँ पर भी यमुना पर दो पुल निर्मित हैं। आगरा में यमुना तट पर जो इमारतें है, मुगल बादशाहों द्वारा निर्मित रामबाग, एत्माद्दौला, आगरा किला और ताज महल पर्यटकों के निमित्त अत्याधिक प्रसिद्ध हैं। आगरा में यमुना तट पर पोइयाघाट, बलकेश्वर घाट, रामबागघाट, जोहराबागघाट, एत्माद्दौलाघाट कचहरीघाट हाथीघाट, दशहराघाट, बटेसरघाट तथा चकलाघाट आदि प्रमुख एतिहासक सांस्कृतिक स्थल अवस्थित हैं।आगरा नगर से आगे यमुना के एक ओर फिरोजाबाद और दूसरी ओर फतेहबाद जिला और तहसील स्थित है। उनके बाद बटेश्वर का सुप्रसिद्ध धार्मिक और ऐतिहासिक स्थल आता है, जहाँ ब्रज की सांस्कृतिक सीमा समाप्त होती है। बटेश्वर का प्राचीन नाम 'सौरपुर' है, जो भगवान श्री कृष्ण के पितामह शूर की राजधानी थी। यहाँ पर यमुना ने बल खाते हुए बड़ा मोड़ लिया है, जिससे बटेश्वर एक द्वीप के समान ज्ञात होता है। इस स्थान पर कार्तिक पूर्णमा को यमुना स्नान का एक बड़ा मेला लगता है।
बटेश्वर से आगे इटावा एक नगर के रूप में यमुना तट पर बसा हुआ है। यह भी आगरा और बटेश्वर की भाँति ऊँचाई पर बसा हुआ है। यमुना के तट पर जितने ऊँचे कगार आगरा और इटावा जिलों में हैं, उतने मैदान में अन्यत्र नहीं हैं। इटावा से आगे मध्य प्रदेश की प्रसिद्ध नदी चम्बल यमुना में आकर मिलती है, जिससे इसका आकार विस्तीर्ण हो जाता है, अपने उद्गम से लेकर चम्बल के संगम तक यमुना नदी, गंगा नदी के समानान्तर बहती है। इसके आगे उन दोनों के बीच के अन्तर कम होता जाता है और अन्त में प्रयाग में जाकर वे दोनों संगम बनाकर मिश्रित हो जाती हैं। चम्बल के पश्चात यमुना नदी में मिलने वाली नदियों में सेंगर, छोटी सिन्ध, बतवा और केन उल्लेखनीय हैं। इटावा के पश्चात यमुना के तटवर्ती नगरों में काल्पी, हमीर पुर और प्रयाग मुख्य है। प्रयाग में यमुना एक विशाल नदी के रूप में प्रस्तुत होती है और वहाँ के प्रसिद्ध ऐतिहासिक किले के नीचे गंगा में मिल जाती है। प्रयाग में यमुना पर एक विशाल पुल निर्मित किया गया है, जो दो मंजिला है। इसे उत्तर प्रदेश का विशालतम सेतु माना जाता है। यमुना और गंगा के संगम के कारण ही, प्रयाग को तीर्थराज का महत्व प्राप्त हुआ है। यमुना नदी की कुल लम्बाई उद्गम से लेकर प्रयाग संगम तक लगभग 860 मील है। यमुना 1029 किलोमीटर का जो सफर तय करती है, उसमें दिल्ली ये लेकर चंबल तक का जो सात सौ किलोमीटर का जो सफर है उसमें सबसे ज्यादा प्रदूषण तो दिल्ली, आगरा और मथुरा का है. इन जगहों के पानी में ऑक्सीजन तो है ही नही. चंबल पहुंच कर ये नदी पुनर्जीवित होती है.
यमुना नदी नहीं, यमुना नाला बन गया है :- जब दिल्ली से यमुना में 22 किलोमीटर के सफर में ही 18 नाले मिल जाते हैं तो बाकी जगह का हाल क्या होगा ? इसमें सबसे बड़ा योगदान औद्योगिक प्रदूषण का है जो साफ़ हो ही नही रहा.यमुना में प्रदूषण का स्तर खतरनाक है और दिल्ली से आगे जाकर ये नदी मर जाती है.विशेषज्ञों का मानना है कि इसकी वजह है औद्योगिक प्रदूषण, बिना उपचार के कारखानों से निकले दूषित पानी को सीधे नदी में गिरा दिया जाना,यमुना किनारे बसी आबादी मल-मूत्र और गंदकी को सीधे नदी मे बहा देती है.साथ ही धार्मिक वजहों के चलते तमाम मूर्तियों अन्य सामग्री का नदी में विसर्जन. लेकिन इनमें सबसे खतरनाक है रासायनिक कचरा.सिटिजन फोरम फॉर वाटर डेमोक्रेसी के समन्वयक एसए नकवी प्रदूषित होती यमुना की कहानी बताते है, “यमुना 10 29 किलोमीटर का जो सफर तय करती है, उसमें दिल्ली से लेकर चंबल तक का जो सात सौ किलोमीटर का जो सफर है उसमें सबसे ज्यादा प्रदूषण तो दिल्ली, आगरा और मथुरा का है. दिल्ली के वज़ीराबाद बैराज से निकलने के बाद यमुना बद से बदतर होती जाती है. इन जगहों के पानी में ऑक्सीजन तो है ही नही. चंबल पहुंच कर इस नदी को जीवन दान मिलता है और वो फिर से अपने रूप में वापस आती है.”
यमुना ऐक्शन प्लान:- हेजार्ड सेंटर के डुनू राय का मानना हैं कि यमुना ऐक्शन प्लान के दो चरणों में इतना पैसा बहाने के बाद भी अगर नदी का हाल वही का वही है तो इसका सीधा मतलब ये है कि जो किया गया हैं वो सही नही है.डुनू राय आगे कहते हैं कि नदी साफ़ रहने के लिए ज़रूरी है कि पानी बहने दिया जाए. हर जगह बांध बना कर उसे रोकने से काम नही चलेगा. दिल्ली के आगे जो बह रहा है वो यमुना है ही नही वो तो मल-जल है. पहले मल-जल को नदी में छोड़ दो और उसके बाद उसका उपचार करते रहो तो नदी कभी साफ़ नही हो सकती. श्रीगुरु वशिष्ठ मानव सर्वांगीण विकास सेवा समिति के जल सत्याग्रही पंडित अश्विनी कुमार मिश्र कहते हैं कि हिंदुस्तान का जिस तरह का मौसम चक्र है उसमें हर नदी चाहे वो कितनी भी प्रदूषित क्यों हो, साल में एक बार बाढ़ के वक्त खुद को फिर से साफ़ करके देती है, पर इसके बाद हम फिर से इसे गंदा कर देते है, तो हमें नदी साफ़ करने की बजाय इसे गंदा करना बंद करना पड़ेगा. यही यमुना संगम में मिलती है. इलाहाबाद के कुंभ में लोग जिस पानी में स्नान कर रहे हैं वो यमनोत्री से निकली यमुना कदापि नहीं कही जा सकती हैं। उसे तो चम्बल जैसे कुछ उदार नदियों ने जीवनदान देकर जिन्दा रखा है, क्योंकि दिल्ली के वज़ीराबाद के आगे तो यमुना है ही नही वो तो सिर्फ नाला बनकर रह गई है. आगरा और मथुरा का हाल तो बद से भी बदतर है।
उपाय :- बरसात में वृहत स्तर पर जल संचयन किया जाना चाहिए। उस समय जल की उपलब्धता रहती है। इसलिए मूल नदी से इतर हर छोटी बड़ी स्रोतों को संपुष्ट किया जाना चाहिए। इससे मूल नदी में भी पानी की कमी नहीं होने पाती और भूजल का स्तर भी गिरने से बचा रहता है। यदि बरसात पर इसे संपुष्ट ना किया गया तो वह पानी बेकार होकर समुद्र तक पहुंच जाता है और देश में पानी के संकट से निजात नहीं मिल पाती है। एसे संचयन के अनेक स्तरीय जलाशय बनाये जाने चाहिए , जो एक एक भरकर अतिरिक्त जल दूसरे को पुष्ट करता रहता है। इस प्रकार यह क्षेत्र हरा भरा रहेगा और सूखे से निजात मिलेगी। बड़ी अधिकांश नदियां तो किसी पहाड़ से एक स्रोत के रुप में निकलती हैं। उसके आगे रास्तें में अनेक झरने स्रोत तथा सहायक नदियां मिलकर मूल नदी को पुष्ट करती हैं। इसमें तरह तरह के जल जन्तु पलते हैं जो पानी को प्राकृतिक रुप से परिशुद्ध करते रहते हैं। नमी बराबर रहने पर हरे भरे जंगल उग आते हैं और उस क्षेत्र में पर्याप्त वर्षा के कारक बनते जाते हैं। एसा ना होने पर वह क्षेत्र रेगिस्तान या नंगे पहाड़ में बदलने लगता है। यमुना मथुरा आगरा में विल्कुल सूख चुकी हैं। परन्तु चम्बल मिलने से आगे यह प्रयाग तक अपना अस्तित्व बचाने में सफल रह जाती है। सरस्वती नदी को यदि संपुष्टि मिली होती तो वह भौतिक रुप में आज दृश्यमान होती। इसलिए पारम्परिक स्रोतों को पुनःजीवित किया जाना नितान्त आवश्यक है। मनरेगा तथा अन्य कल्याणकारी योजनाओं को जल संचयन में उपयोग करके आम जनता तथा प्रकृति संरक्षण दोनों को लाभ पहुंचाया जा सकता है.क्या हमारी केन्द्र या राज्य सरकारें इस समस्या का निदान कर सकती हैं ?

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