राजनीति आज समाज सेवा
नहीं बल्कि व्यवसाय बन चुका है आज युवा भी राजनीति में समाज सेवा के लिए नहीं बल्कि
पैसा कमाने के लिए तेजी से भाग रहा है आज आपको भारत के उन आंकड़ों की बात कराते हैं
कि जहां राजनेताओं पर होने वाला खर्च कितना है पूरे भारत के अंदर राजनेताओं पर हर वर्ष
लगभग 20 अरब रूपये खर्च होते हैं। यह आंकड़ों की जुबानी नही सच है कि आखिर आपके और हमारे
दिए गए टैक्स का पैसा कहां जा रहा है? गौर करें तो जो जनसेवकों पर जनता के नाम पर प्रतिवर्ष
सैलरी भत्तों को लगाकर करोड़ों रुपए खर्च हो रहे हैं लेकिन जनता को मिलता क्या है सिर्फ
आश्वासन। राजनेता वोट तथा अपनी कुर्सी के लिए आम जनता की सेवा के नाम पर भी अनाप
सनाप पैसों का बंदर बांट करते देखे गये हैं। कितनी मेहनत से मध्यम वर्ग अपने टैक्स
को अदा कर अपने सुख साधनों की तिलांजलि देकर यह पैसा राजकोष में जमा करवाता है और सत्ताधारी
उससे पार्क, मुर्तियां तथा अपने लोगों को किसी महापुरुष के नाम को जोड़ते हुए खैराती
बांट देता है। राजनीति के नाम पर देश का कितना
रुपया खर्च हो रहा है यह इसकी बानगी भर है आखिर लोकतंत्र में सबको अधिकार है कि सूचना
अधिकार अधिनियम के तहत जान सकते हैं कि आपके क्षेत्र में कौन-कौन से कार्य हो रहे हैं,
कुल मिलाकर लगभग यह बजट देश के माननीय सदन में मेजें थपथपा कर तुंरत बढ़ा देते हैं लेकिन
जनता की मांगों पर आज भी संसद और विधानसभाओं में काफी समय लगता है आंकड़े चैकाने वाले
हैं और सच भी यही है।
विधायक
विधान परिषद सदस्य के खर्च:-भारत में कुल 4120 विधायक और 462 विधान
परिषद सदस्य हैं अर्थात कुल 4,582 विधायक। प्रति विधायक वेतन भत्ता मिला कर प्रति माह
2 लाख का खर्च होता है। अर्थात 91 करोड़ 64 लाख रुपया प्रति माह। इस हिसाब से प्रति
वर्ष लगभ 1100 करोड़ रूपये। भारत में लोकसभा और राज्यसभा को मिलाकर कुल 776 सांसद हैं।
इन सांसदों को वेतन भत्ता मिला कर प्रति माह 5 लाख दिया जाता है। अर्थात कुल सांसदों
का वेतन प्रति माह 38 करोड़ 80 लाख है। और हर वर्ष इन सांसदों को 465 करोड़ 60 लाख रुपया
वेतन भत्ता में दिया जाता है। अर्थात भारत के विधायकों और सांसदों के पीछे भारत का
प्रति वर्ष 15 अरब 65 करोड़ 60 लाख रूपये खर्च होता है। ये तो सिर्फ इनके मूल वेतन भत्ते
की बात हुई। इनके आवास, रहने, खाने, यात्रा भत्ता, इलाज, विदेशी सैर सपाटा आदि का का
खर्च भी लगभग इतना ही है। अर्थात लगभग 30 अरब रूपये खर्च होता है इन विधायकों और सांसदों
पर।
सुरक्षाकर्मियों
पर खर्च :-अब गौर कीजिए इनके सुरक्षा में तैनात सुरक्षाकर्मियों के वेतन पर।
एक विधायक को दो बॉडीगार्ड और एक सेक्शन हाउस गार्ड यानी कम से कम 5 पुलिसकर्मी और
यानी कुल 7 पुलिसकर्मी की सुरक्षा मिलती है। 7 पुलिस का वेतन लगभग (25,000 रूपये प्रति
माह की दर से) 1 लाख 75 हजार रूपये होता है। इस हिसाब से 4582 विधायकों की सुरक्षा
का सालाना खर्च 9 अरब 62 करोड़ 22 लाख प्रति वर्ष है। इसी प्रकार सांसदों के सुरक्षा पर प्रति
वर्ष 164 करोड़ रूपये खर्च होते हैं। Z श्रेणी की सुरक्षा प्राप्त नेता, मंत्रियों,
मुख्यमंत्रियों, प्रधानमंत्री की सुरक्षा के लिए लगभग 16000 जवान अलग से तैनात हैं।
जिनपर सालाना कुल खर्च लगभग 776 करोड़ रुपया बैठता है। इस प्रकार सत्ताधीन नेताओं की
सुरक्षा पर हर वर्ष लगभग 20 अरब रूपये खर्च होते हैं।अर्थात हर वर्ष नेताओं पर कम से
कम 50 अरब रूपये खर्च होते हैं। इन खर्चों में राज्यपाल, भूतपूर्व नेताओं के पेंशन,
पार्टी के नेता, पार्टी अध्यक्ष , उनकी सुरक्षा आदि का खर्च शामिल नहीं है। यदि उसे
भी जोड़ा जाए तो कुल खर्च लगभग 100 अरब रुपया हो जायेगा।
गरीब को क्या मिलता है :-अब
सोचिये हम प्रति वर्ष नेताओं पर 100 अरब रूपये से भी अधिक खर्च करते हैं, बदले में
गरीब लोगों को क्या मिलता है? भारत का असली लोकतंत्र यही है जो कि कुछ चंद लोगों तक
ही सीमित रह गया है लेकिन आम लोग आज भी जस के तस हैं, नेता अरबपति बन चुके हैं और गरीब
खाई की ओर जा रहा है, क्या यही है भारत का असली लोकतंत्र?
हम प्रति वर्ष नेताओं पर 100 अरब रूपये से भी अधिक खर्च करते हैं, बदले में गरीब लोगों
को क्या मिलता है ? क्या यही है लोकतंत्र
? यह 100 अरब रुपया हम भारत वासियों से ही टैक्स के रूप में वसूला गया होता है। प्रत्येक
भारतवासी को जागरूक होना ही पड़ेगा और इस फिजूल खर्ची के खिलाफ बोलना पड़ेगा । आज फिर एक अन्ना को देश के सामने आना होगा।
इस बार उसे केजरी वाल जैसे शिष्य से बचकर रहना होगा । यदि हम इस प्रकार नहीं कर सके
तो हम स्वतंत्र होते हुए भी अंग्रेजो के शासन की तरह परतंत्र ही हैं।
जय भारत ।
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