जीवित व्यक्ति की तरह दोनों को कानूनी अधिकार:- न्यूजीलैंड में स्थित बांगक्यू नदी को जीवित मानव
के समान अधिकार दिए गए हैं। इसलिए
गंगा-यमुना को भी जीवित
मानव की तरह अधिकार
दिए जाने चाहिए। उत्तराखंड हाई कोर्ट ने अपनी शक्तियों
का प्रयोग करते हुए दोनों नदियों को जीवित मानव
की तरह अधिकार प्रदान कर दिया है।
भारतवर्ष में पहली बार दो प्रमुख पौराणिक
नदी गंगा-यमुना को जीवित व्यक्ति
की तरह कानूनी अधिकार प्रदान किया है। गंगा व यमुना की
अविरलता को लेकर उत्तराखंड
हाई कोर्ट ने यह एतिहासिक
फैसला दिया है। हाई कोर्ट के जस्टिस श्री
राजीव शर्मा और न्यायमूर्ति श्री
आलोक सिंह की संयुक्त खंडपीठ
ने यह आदेश दिया
है। फैसले के बाद अब
इन दोनों नदियों को लीगल पर्सन
(जीवित व्यक्ति) की तरह लीगल
स्टेटस मिल गया है। न्यायालय ने साफ तौर
पर कहा कि गंगा व
यमुना को जीवित मानव
की तरह का संरक्षण देना
होगा। जिस तरह जीवित व्यक्ति को संविधान में
सम्मान से जीने, स्वतंत्रता
के अधिकार होते हैं, उसी तरह गंगा व यमुना को भी दर्जा
मिल गया। अब दोनों नदियों
की ओर से मुकदमे
सिविल कोर्ट तथा अन्य अदालतों में दाखिल किए जा सकते हैं।
गंगा व यमुना में कूड़ा फेंकने तथा पानी कम होने, गंगा
व यमुना में अतिक्रमण होने पर मुकदमा होगा
। गंगा व यमुना की
ओर से मुख्य सचिव,
महाधिवक्ता, महानिदेशक निर्मल गंगा वाद दायर करेंगे।
जिस
प्रकार समाज में नारी पर एसिड तथा
अन्य प्रकार की प्रताड़ना की
जाती है। ठीक उसी प्रकार हमारे पूज्य गंगा यमुना और उसकी सहायक
नदियों पर भी विभिन्न
प्रकार के प्रहार एवं
ज्यादत्तियां की जा रही
हैं। उत्तराखण्ड उच्च न्यायालय द्वारा पारित नये आदेश के परिप्रेक्ष्य में
अब इन नदी देवियों
को संरक्षित तथा सुरक्षित किये जाने की आवश्यकता है।
इसी क्रम में श्री गुरु वशिष्ठ मानव सर्वांगीण विकास सेवा समिति के संस्थापक अध्यक्ष
पं. अश्विनी कुमार मिश्र ने कुछ प्रमुख
विन्दुओं के माध्यम से
अपनी संवेदना व्यक्त किया है
1.प्रवाह रोककर प्राण लेने का प्रयास - गंगा यमुना नदी समस्त जगत की जीवन दायिनी
हैं। आज
आने अनजाने लोग प्रकारान्तर से मां की
हत्या रोज का रोज करने
का प्रयास कर रहे हैं
जो बहुत बड़े पाप के भागी बनते
जा रहे हैं। मां यमुना का अविरल प्रवाह
जारी रहना चाहिए। यमुना की गन्दगी की
असली वजह तो ये है
कि उसका पानी हरियाणा के यमुना नगर
में हथिनीकुंड बराज में रोक लिया गया है। वहाँ से यूपी और
हरियाणा के लिए दायें-बायें नहर निकाल ली गयी और
यमुना का पानी खेतों
में बाँट लिया गया। ऐसे में यमुना सदानीरा नहीं रह पाई। उत्तराखण्ड
में यमुना कल कल करती
हुई बहती हैं परन्तु मैदानों पर आकर मानव
के प्रहारों से वह बहुत
आहत होती गयी हैं। हथिनीकुंड का बैराज यमुना
का सारा पानी पी गया। यमुना
बैराज 1996 से 1999 के बीच बना,
जबकि उससे पहलेअंग्रेजी राज का करीब सवा
सौ साल का ताजेवाला बैराज
था। उसी की जगह हथिनीकुंड
बनाया गया ताकि यूपी और हरियाणा की
नहरों को पानी मिल
सके। पता नहीं किन महानुभावों ने हथिनीकुंड बराज
बनवा कर यमुना का
पूरा पानी पी लेने की
सहमति दी थी। यह
अपने आप में शोध
का विषय है। यमुना का पानी रुक
गया, नदी जल-विहीन हो
गयी, ऐसे में उसमें गिरने वाला थोड़ा भी कचड़ा उसे नरक
बनाने के लिए काफी
है । यहाँ तो उसे दिल्ली
जैसे भीमकाय शहर का कचड़ा झेलना
है, फरीदाबाद-बल्लभगढ, पलवल, मथुरा और आगरा को
झेलना है । ऐसे में उसकी क्या दुर्गत हुई यह किसी से
छिपा नहीं है। दिलों में अपनी खूबसूरत पहचान खोती जा रही प्राकृतिक
व सांस्कृतिक धरोहर, यमुना को पुनर्जीवित करने
के उत्तराखण्ड से लेकर हरियाणा
दिल्ली तथा उत्तर प्रदेश के विभिन्न केंद्र केन्द्रीय
व राज्य सरकारों द्वारा अब तक किये
गए प्रयासों में हजारों करोड़ रूपये यमुना में बहाए जा चुके हैं।
यमुना की स्थिति बद
से बदत्तर होती रही है।
2.मलमूत्र केमिकल तेजाब रसायन व एसिड का प्रहार - श्री मिश्र ने बताया कि
दिल्ली के कचड़े (घरेलू
और औद्यौगिक दोनों) और उसके कुप्रबन्धन
ने पूरा कर दिया। उद्योग
इकाइयों से निकलने वाले
जल को विना किसी
प्रकार शोधन किये सीधे नदियों में प्रवाहित कर दिये जा
रहे हैं। नदियों में निरन्तर मल मूत्र केमिकल
तेजाब रसायन पशुओं के हड्डी व
खून, पालीथीन तथा अन्य कचरे डाले जा रहे हैं।
इससे जल जीव मरते
जा रहे हैं। पानी पीने लायक नहीं रहा, यदि स्नान किया तो चर्म रोग
हो जा रहे हैं।
यह दुर्दशा एक मां की
हो रही जो सदियों से
पूजी जाती रही है और न्यायालय
ने जिसे मानव की श्रेणी में
रखकर थोड़ी ही सही संवेदना
दिखाई है। एसा नहीं है कि इन
शहरों के कचड़ों के
प्रबन्धन के लिए धन
खर्च नहीं किये गये, लेकिन अरबों रुपये कहाँ गये किसी को पता नहीं
है। हालत दिन ब दिन विगड़ती
ही जा रही है।
3.भूजल दोहन व जल भंडारण अवरोध का प्रहार- पुराने समय में जल निर्वाध बहता
तथा संचय होता रहता था। कभी पानी की समस्या नही
आती थी। जब अल्प वृष्टि
होती थी तभी समस्या
आती थी। आज जल दोहन
कर प्राकृतिक श्रोत दिन ब दिन सूखते जा रहे हैं।
इसे तत्काल रोकने तथा जलाशय तथा हार्वेस्टिंग के जरिये जल
संचयन किया जाना चाहिए। आज बाढ़ व सूखे की विभीषिका का एक कारण
यह भी है। अगर इस तरफ सरकार, स्वयंसेवी संस्थायें व आम जनता ने ध्यान नहीं दिया तो
उत्तर भारत के सारे भूक्षेत्र धीरे धीरे रेगिस्तान में बदलते जाएगे। मानवता में त्राहि
त्राहि मच जाएगी। फिर हालात सामान्य करने में बहुत ही असुविधा होगी।
4.बांध बनाकर
अंग विच्छेदित करने का प्रहार-
बांध बनाकर जल रोकने से नदी का अंग विच्छेदन हो जाता है। वह अपने प्राकृतिक स्वरुप
को निरन्तर खोती जाती है। नदी की सारी स्वतंत्रता तथा अविरलता प्रभावित होती है। उसका
सारा सौन्दर्य खत्म हो जाता है। वह आंसू बहाती हुई सिसकती जाती है। इसलिए बांध बनाकर
पानी को रोकने का काम पूर्णरुप से बन्द किया जाना चाहिए। केवल बरसात के दिनों में जल
को प्राकृतिक व कृत्रिम जलाशयों में संचयन की दृष्टि से ही बांधना उचित है।
5.अतिक्रमण
का प्रहार- देखने
में आया है कि नगरीकरण के दबाव के कारण नदी तट के आरक्षित क्षेत्रों में नयी नयी कालोनियां
बनती जा रही हैं। इससे जल निकास अवरुद्ध होता है और वह क्षेत्र बदहाली की तरफ बढ़ता
जाता है।बरसात के दिनों में पानी निकास नहीं होता है। नदी के किनारे की सुषमा व सौन्दर्य
प्रभावित होता है। इस क्षेत्र से निकलने वाले कचरे व गन्दे पानी भी इन्हीं नदियों में
गिरते हैं। गंगा यमुना तथा अन्य सहायक नदियां इस प्रकार के प्रहार से सर्वाधिक प्रभावित
हुई हैं।
6.चीर हरण
करने का प्रहार- बृक्षों
का अंधाधुन्ध कटान कर नदी का चीर हरण जैसा प्रयास हो रहा है। नदी तट तथा भूक्षेत्र
सूखे रेगिस्तानों मे तब्दील होते जा रहे हैं। इससे ना केवल नदी का अपितु पूरे भूक्षेत्र
की हरियाली सदा सदा के लिए समाप्त हो जाती है। पुराने वृ़क्ष आवश्यकता तथा विकास की
दृष्टि से काट तो दिये जाते हैं लेकिन उनकी जगह पर या अन्य सुरक्षित व बेकार पड़ी भूमि
पर वृक्षारोपण नहीं किये जा रहे हैं बन विभाग तथा उद्यान विभाग अपनी भूमिका निभाने
में असफल रहे हैं।
7.प्राणोत्सर्जन
प्रहार- पुरातन जल
श्रोतों को समाप्त कर आज भारत के बहुत बड़े क्षेत्र में जल का अकाल बढ़ता जा रहा है।
सूखे क्षेत्र बढ़ते जा रहे हैं। जल श्रोतों के समाप्त होने से नदी के जल का स्तर भी
गिरता जाता है। वह बारह महीने अपने को जिन्दा नहीं रख पाते हंै। जल श्रोतों के जिन्दा
रहने से नदी भी सजीव रहती है और निर्वाध रुपसे अविरल प्रवाहमयी बनी रहती है।
आज बाढ़ व सूखे की विभीषिका का
एक कारण यह भी है। अगर इस तरफ सरकार, स्वयंसेवी संस्थायें व आम जनता ने ध्यान नहीं
दिया तो उत्तर भारत के सारे भूक्षेत्र धीरे धीरे रेगिस्तान में बदलते जाएगे। मानवता
में त्राहि त्राहि मच जाएगी। फिर हालात सामान्य करने में बहुत ही असुविधा होगी।
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