Wednesday, April 26, 2017

बुढ़िया का ताल आगरा - डा. राधेश्याम द्विवेदी


आगरा की भूमि मुगलकालीन राजाओं,बेगमों उच्च पदस्थ लोगों तथा साधु महात्माओं के स्मारकों, महलों ,बाग बगीचों व बगीचियों से भरी पड़ी है।मुगल पूर्व बागों में कैलाश, रेनुकता, सूरकुटी, बृथला व बुढ़िया का ताल आदि प्रमुख हैं। मुगलकालीन बागों की एक लम्बी श्रृंखला यहां देखने को मिलती है।ये मुख्यतः तीन प्रकार के होते हैं-  अस्तित्व या वजूद वाले,  विना अस्तित्व वाले या विलुप्त और  केवल नाम के बाग। इनमें कुछ अवशेष के रूप में देखे जा सकते हैं। कुछ समय के साथ मोहल्ले एवं बस्तियों की आवादी के कारण समाप्त हो चुके हैं। इन बागों में फल फूलों, सजावटी वृक्षों , छायादार वृक्षों , मेवादार वृक्षों तथा औषधिवाले वृक्षों का भरमार है। इनके पास कुएं, हौज, नदी, ताल , रहट, फव्वारे तथा सीढ़ियां आदि भी होती रही यहां तरबूज, अंगूर, गुले सुर्ख व गुले नीलोफर के पौधे लगे हुए थे। बुढ़िया का ताल आगरा टुण्डला राजमार्ग पर लगभग 23 किमीं की दूरी पर एत्माद्पुर तहसील में एत्माद्पुर कस्बे से थोड़ा पहले स्थित है। कस्वे के पश्चिम में ईंटों व लाल बलुए पत्थरों से निर्मित एक विशाल वर्गाकार तालाब है। जिसके बीचोबीच में 1592 ई. में बना हुआ एक दो मंजिला अष्टभुजाकार भवन है जिस पर गुम्बद बना हुआ है। भवन तक पहुचने के लिए 21 मेहराबों पर बना एक पक्का पुल है। तालाब के पास 5 पक्के घाटों के अवशेष भी मिले है। इस स्थान को अकबर के दरबारी ख्वाजा एत्माद्खान का निवास बताया जाता है। पास ही में उसका एक मंजिली मकबरा भी बना हुआ है। यहां तालाब के तल में खुदाई में अनेक बौद्धकालीन मुर्तियां व संरचनायें भी प्राप्त हुई हैं । प्रारम्भ में इसका बोधि ताल का नाम था। बाद में विगड़कर बुढ़िया का ताल हो गया। बुढ़िया से समबन्धित अनेक किस्से व किंबदन्तिया भी सुनी जाती है। यहां 1773 ई. में पेशवा बाजीराव ने अपना पड़ाव डाला था। 1857 में हिम्मतपुर के जोरावर सिंह ने यहां पड़ाव डाला था। इस स्मारक पर अंगे्रजों द्वारा खुदे हुए नाम के निशान आज भी देखे जा सकते है। यहां सिंगाड़े की खेती तथा आम जामुन आदि के फसलों की नीलामी भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा की जाती है। वर्तमान समय में यह स्मारक चारो ओर से घिरता चला आ रहा है। अनेक अवैध निर्माण तथा पूजा स्थल इसको घेरने के उद्देश्य से किये जा रहे हैं। पास ही में होटल तथा पेटरोल पम्प भी खुल गये हैं जो पुरातत्व अधिनियम की अनदेखी करके बनवाया गया है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा विशेष स्वच्छता पखवाड़े  में 27 अप्रैल 2017 को यहां सफाई अभियान सफलता पूर्वक चलाया गया। कार्यालयाध्यक्ष अधीक्षण पुरातत्वविद् डा. भुवन विक्रम के कुशल निर्देशन में अधिकारियों और कर्मचारियों ने विभिन्न संस्थाओं व संगठनों के सहयोग से खूब बढ़चढ.कर भाग लिया है। सभी उप मंडल के प्रभारियों को यह भी निर्देशित किया गया है कि प्रति दिन की विशेष सफाई अभियान की फोटो सहित रिपोर्ट भी मंडल कार्यालय को भेजी जाय।  बुढ़िया का ताल प्रायः सूख जाया करता है। इस कारण आस पास के गांवों में जल का स्तर नीचे चला गया है। इन गांवों में गिरते जलस्तर व दूषित पानी का एक मात्र कारण बुढ़िया ताल का सूख जाना है। ऐतिहासिक बुढ़िया का ताल चावली माइनर का टेल प्वाइंट है। चार दशक पहले तक यहां 300 घनमीटर से अधिक का जल संचय होता था जिसके चलते आसपास के गांव व एत्मादपुर का जलस्तर 70 से 80 फीट था। धीरे-धीरे नहरों का अस्तित्व खत्म होता गया और यह विशाल जलाशय सूख गया। आसपास का पानी दूषित हो गया है तथा जलस्तर बढ़कर 200 फीट से ऊपर पहुंच गया। बुढ़िया के ताल को उसके वास्तविक स्वरूप में लाने के संयुक्त प्रयास चल रहे हैं।




2 comments:

  1. Hello Sir I need to contact you.. I need some information regarding Budhiya ka taal.. Please help.. Where can I contact you?

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  2. Hello Sir I need to contact you.. I need some information regarding Budhiya ka taal.. Please help.. Where can I contact you?

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