सपा मुखिया स्वर्गीय मुलायम सिंह यादव के मुख्यमंत्री बनने के बाद 1989 से सैफई चर्चाओं में आया, लेकिन सैफई का इतिहास चार हजार साल पुराना है। यहां ईसा से 2000 साल पहले की सभ्यता मौजूद है। अगस्त 1966 में खेत की जुताई करते वक्त यहां कुल्हाड़ियां, बर्छियां, भालों के अग्रभाग, मानवकृत और वलय जैसी तांबे की कई चीजें मिलीं। एएसआई के बीबी लाल के निर्देशन में तत्कालीन पुरातत्वविद् एलएम बहल ने दिसंबर 1970 से फरवरी 1971 के बीच उत्खनन कराया, जिसमें तांबे का हुकदार बाणाग्र और गैरिक मृदभांड मिले। गैरिक मृदभांड ईसा से दो से 1500 साल पहले के काल में मिलते हैं। एएसआई ने वर्ल्ड हेरिटेज वीक के दौरान आगरा के किले में सैफई में हुए उत्खनन का ब्योरा प्रदर्शनी में पेश किया है। भारतीय पर्यटकों के लिए यह ब्योरा बेहद चौंकाने वाला है। सैफई में उत्तर हड़प्पाकाल के दौरान ग्रामीण सभ्यता में प्रयोग किए गए मिट्टी के बर्तन प्राप्त हुए, जिससे सैफई में चार हजार साल पहले सभ्यता और संस्कृति होने के प्रमाण मिलते हैं। गणेशपुर 4000 साल पुरानी हेरिटेज साइट :-
मैनपुरी के गणेशपुर में 77 ताम्रनिधियों के मिलने और जांच में 3800 साल पुराने होने के बाद हेरिटेज साइट के उत्खनन की मांग पुरातत्वविदों और इतिहासकारों ने की है। उनका कहना है कि सैफई और मैनपुरी के उत्खनन से पूरी सभ्यता के विकास जानकारी मिलेगी। गणेशपुर गंगा-यमुना के दोआब में ऐसी साइट हैं, जहां से पहली बार 39 इंच लंबी तलवार और चार धार वाला भाला मिला है। यहां से 30 किमी दूर सैफई में 52 साल पहले उत्खनन के दौरान ताम्रनिधियां तो मिलीं, लेकिन वहां से केवल 45 सेमी लंबा हार्पून ही मिला। ओसीपी के साथ यहां ग्रे नार्दन ब्लैक पॉलिशड वेयर यानी एनबीपी मिले। इन पर क्रिस-क्रॉस लाइनें थीं। यहां गैरिक मृदभांड में कटोरी और जार भी मिले थे। हड़प्पा और गंगाघाटी सभ्यता की समकालीन सभ्यता के जमीन में दफन रहस्यों को उजागर करने के लिए राज्य सरकार भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण से उत्खनन की सिफारिश कर सकती है।
चार हजार साल पुराना है सैफई का इतिहास:-
मैनपुरी के गणेशपुर में जिस तरह से ताम्रनिधियां मिली हैं, ठीक वैसे ही इटावा जिले के सैफई से 1970 में हुए उत्खनन में ताम्रनिधियां पाई गई थीं, जो कि चार हजार साल पुरानी थीं। यहां केवल हार्पून मिले, जबकि गणेशपुर में तलवारें और चार धार, चार हुक वाले भाले मिले हैं। पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव के गृह जिले से चर्चित इटावा के सैफई में सबसे पहले 1966 में खेत जोतते समय तांबे की कुल्हाड़ियां, बर्छियां, भालों के अग्रभाग, मानवकृत और वलय जैसी तांबे की कई चीजें मिलीं।
एएसआई के डॉ. बीबी लाल के निर्देशन में तत्कालीन पुरातत्वविद् एलएम बहल ने दिसंबर 1970 से फरवरी 1971 के बीच 20×20 मीटर ट्रेंच में उत्खनन कराया, जिसमें तांबे का हुकदार बाणाग्र और गैरिक मृदभांड मिले।
जुलाई सन 1969 ई. सैफई , इटावा के किसान श्री भंवरी सिंह को खेत की जुताई के दौरान बड़ी संख्या में ताम्र - आयुध मिले । सूचना मिलने पर पुलिस आई और प्राप्त सामग्री को जांच के नाम पर इटावा ले गई । इसके बाद कुछ आयुध किसान को लौटा दिया और उसने उसे कबाड़ी को बेच दिया जिन्हें उसने गला दिया ।
अगस्त 1969 ई. में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण नई दिल्ली को जब इसकी सूचना मिली कि सैफई इटावा में तांबे के कुछ आयुध प्राप्त हुए हैं तो पुरातत्त्व सर्वेक्षण विभाग ने उत्तरी क्षेत्र के तकनीकी सहायक डा. एल एम वहल को निरीक्षण / जांच के लिए भेजा । डा एल एम वहल के सैफई पहुंचने तक (72 घण्टे में) अधिकांश पुरा सामग्री इधर उधर हो गई ।
डा. एल एम वहल ने जांच में जुताई के समय प्राप्त ताम्र - आयुधों में से एक कटार देखने को मिला जिससे यह सिद्ध हुआ कि यह महत्त्वपूर्ण पुरा-स्थल है। उक्त ताम्र आयुध को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के महानिदेशक प्रोफेसर बी. बी. लाल को दिखाया गया । इसके बाद सैफई में डा एल एम वहल के निर्देशन में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने उत्खनन कराया । उत्खनन के दौरान डा बहल के पास बर्लिन विश्वविद्यालय, जर्मनी के पुरा विज्ञानी प्रोफेसर पाल यूली भी सैफई आए । उस समय स्थानीय लोगो ने बताया कि 10 ×10मीटर के क्षेत्र मे लगभग 200 ताम्र आयुध एक ढेर के रूप में रखे थे । ताम्र आयुधो में कुल्हाड़ी, मानवाकृति एवं बर्क्षी व भाले आदि प्रमुख थे । डा.वहल और प्रोफेसर पाल यूली ने कुछ पुरावशेष सैफई वासियों के पास देखा । सैफई के पंचम सिंह व बादाम सिंह ने दोनो पुराविदो को काफी जानकारी व सहयोग दिया ।
सैफई में पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग ने मई 1970 में जब खाई खोदी तो गैरिक मृदभांड (O.C.P.) के साथ एक कटार मिली । दिसम्बर 1970 में डा एल एम वहल ने प्रोफेसर बी बी लाल के कुशल मार्गदर्शन में छोटे स्तर से अनवरत उत्खनन कार्य शुरू किया जो फरवरी 1971 तक चला । सैफई से प्राप्त मृदभांड ( OCP) को डा बी बी लाल ने "Safai Ware" कहा है । सैफई को पुराविदो ने पुनीत स्थल माना है । (Saifai is a holy place of Indian Archaeology )
सैफई पुरास्थल का जिक्र प्रमुख रूप से जर्मनी के प्रोफेसर पाल यूली ने अपनी किताब "द कापर हार्डस आफ इंडियन सब कांटीनेंट और डा एल एम वहल ने पुरातत्त्व -५ में एक्सकेवेशन एट सैफई ओर प्रोफेसर बी बी लाल का लेख द कापर हार्डस कल्चर आव द गंगा वैली में प्रमुख रूप से है । कुछ समय पूर्व युग युगों में सैफई शीर्षक पुस्तक भी प्रकाशित हुई थी ।
सैफई में पुरातत्व सर्वेक्षण एवं उत्खनन कर्ता डा. एल एम वहल को इस आशय का एक प्रमाण पत्र भूतपूर्व एम एल ए श्री मुलायम सिंह यादव जी (उस समय मास्टर साहब के रूप में ख्यात थे ) ने दिया, अवलोकन करें ---
" मै प्रमाणित करता हूं कि श्री लाल मोहन वहल तकनीकी सहायक भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण भारत सरकार के जिनको पुरातत्व विभाग ने खुदाई के कार्य हेतु यहां ग्राम सैफई जि. इटावा में भेजा है । उस स्थान की खुदाई का काम करने के लिए जहां पहले ताम्रयुगीन हथियारों का एक भंडार मिला था । उन्होंने इस स्थान की खुदाई का कार्य बहुत ही संतोषप्रद ढंग से किया तथा उनके काम एवं कार्य प्रणाली से हम सब लोग बहुत ही प्रभावित एवं सन्तुष्ट हैं । यह सैफई ग्राम का पुन: सौभाग्य था कि खुदाई के दौरान एक ताम्रयुगीन तांबे की तलवार पुन: उसी स्थान के करीब मिल गई हैं । जो इस बात का ज्वलंत प्रमाण है कि यह स्थान ताम्र युग में बहुत महत्त्वपूर्ण रहा होगा । मुझे पूर्ण विश्वास है कि इन सब तथ्यों को ध्यान में रखकर विवेचनात्मक दृष्टि से यदि देखा जाय तो ताम्रयुगीन इतिहास पर महत्त्वपूर्ण प्रकाश पड़ेगा ।
मुलायम सिंह यादव, सैफई भू. पू. एम. एल. ए. 20. 5.1970