Friday, July 22, 2022
द्रविड़ शैली का अयोध्या में एकमात्र मन्दिर राम लला सदन का जीर्णोद्धार डा. राधे श्याम द्विवेदी
Tuesday, July 19, 2022
स्वर्गीय राजेश दूबे की द्वितीय पुण्य तिथि पर विविध आयोजन
उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले के कप्तानगंज विकास क्षेत्र में पटखौली राजा ग्राम पंचायत के अंतर्गत दूबे/ द्विवेदी ब्राह्मणों का संस्कार युक्त दुबौली दूबे एक अति चर्चित गांव है। इसमें श्रीराम सनेही दूबे अपने समय के संभ्रांत और प्रभाव शाली व्यक्ति रहे। ना केवल अपने ग्राम पंचायत अपितु हरैया तहसील और बस्ती जिले में उनकी अच्छी ख्याति रही है।इनके इकलौते पुत्र श्री हरी राम दूबे अपने पिता के धरोहर को अत्यन्त बुलंदियों तक पहुंचाने में कोई कोर कसर नहीं लगाई थी।आगे चल कर इनके चार कुशल और व्यवहार परक पुत्र स्वर्गीय श्री अमृत नाथ दूबे, स्वर्गीय श्री देवनाथ दूबे, स्वर्गीय श्री देव नारायण दूबे और श्री शत्रुघ्न प्रसाद दूबे ने आम जन के सहयोग से श्री राम सनेही इंटर कॉलेज दुबौली दुबे बस्ती की स्थापना 1972 में कराए थे । गांव में दुर्गा माता का मंदिर, राम लीलाओ का आयोजन तथा आल्हा ,फाग और कुश्ती - दंगल प्रतियोगिताएं नियमित रूप से यहां आयोजित होती रहती रही हैं ।जिले स्तर पर पहले इलेक्ट्रिक मशीनरी, पंपिग सेट,आयल इंजन और अन्य तरह के मशीनरी पार्ट्स के विक्री और व्यापार में इस परिवार का पूरे बस्ती मंडल में एकाधिकार रहा है।खलीलाबाद,हरैया सिद्धार्थ नगर में अभी भी अनेक व्यवसायिक गतिविधियां उत्कृष्टता के साथ संचालित है। इस परिवार के प्रतिष्ठानों द्वारा स्वराज, एस्कॉर्ट और जान डीयर ट्रेक्टर की खूब बिक्री हुई है। एस पी ऑटो मोबाइल, एस पी ऑटो व्हील, हीरो मोटर्स, टाटा मोटर्स आदि अनेक संस्थान संचालित कर स्वर्गीय श्री राजेश दूबे,श्री अखिलेश दूबे श्री आशीष दूबे और डा रोहन दूबे आटो मोबाइल की दुनियां में पूरे बस्ती मण्डल में एकाधिकार बना रखा है।
कोविड ने परिवार के युवा पुरोधा को छीन लिया:-
इस परिवार के सबसे कुशल युवा संचालक सिद्धार्थ नगर और बस्ती में श्री राजेश दूबे के योगदान को भुलाया नही जा सकता है। कोवीड के क्रूर प्रहार ने इस होनहार को असमय में श्रावण कृष्ण चतुर्थी, सम्वत 2077 तदनुसार 09 जुलाई 2020 को
हमसे छीन लिया। श्री राम सनेही सेवा सदन दुबौली दूबे के प्रमुख उत्तराधिकारी और एस पी ऑटो व्हील हीरो मोटर्स के संस्थापक देव तुल्य, ज्येष्ठ भ्राता, स्मृतिशेष श्री राजेश दूबे जी की दिव्यात्मा ने कोविद संक्रमण से अनुप्राणित होकर अपना पंचभौतिक स्थूल शरीर को छोड़कर बैकुंठ धाम में प्रभु के परम तत्व में अंतर्निहित हो गई हैं। इससे न केवल दूबे दुबौली के श्री रामसनेही परिवार अपितु बस्ती सिद्धार्थ नगर के पूरे क्षेत्र का जन मानस हतप्रभ होकर परमेश्वर के इस कृत्य को बड़े ही आत्मिक क्लेश के साथ अंगीकार किया है।
समय समय पर विविध उच्चस्तरीय कार्यक्रम आयोजित: इस परिवार द्वारा लगातार समय समय पर अनेक आध्यात्मिक और सामाजिक कार्यक्रम अपने सामर्थ्य और श्रेष्ठता के साथआयोजीत होते रहे हैं साथ ही विविध चिकित्सा शिविर आयोजित होते रहे हैं। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ एवं रोटरी क्लब मिड टाउन बस्ती के संयुक्त तत्वाधान में स्व. राजेश दुबे की स्मृति में दुबौली दुबे गांव में स्थित दुर्गा मंदिर परिसर में 14 जनवरी 2021 को संक्रान्ति के पर्व पर निशुल्क चिकित्सा शिविर एवं सहभोज का आयोजन हुआ था। विश्व रक्त दान दिवस 14 जून 2022 को रक्तदान शिविर गोटवा स्थित टाटा मोटर्स पर संपन्न हुआ था। नवरात्रि के अवसर पर 2 से 10 अप्रैल 2022 को मां दुर्गा मंदिर दुबौली दूबे में शतचंडी यज्ञ आदि पूरी निष्ठा और पवित्रता से संपन्न हुआ है।
द्वितीय पुण्य तिथि पर विविध आयोजन:-
स्मृतिशेष श्री राजेश दूबे जी की द्वितीय पुण्यतिथि पर श्रावण कृष्ण चतुर्थी, सम्वत 2079, दिन- रविवार अंग्रेजी तिथि- 17 जुलाई 2022 ई० को पैतृक निवास, ग्राम - दुबौली दूबे में सुंदर काण्ड पाठ/हवन प्रातः 7 बजे से प्रारंभ हुआ। इसके उपरांत ब्रह्मणदेव और अन्य अथितियों के भोज का आयोजन किया गया है।
निःशुल्क स्वास्थ्य शिविर : -
आंख, कान, नाक, गला, हड्डी , महिला रोग, जनरल फिजिशियन, सर्जन, दांत के रोग की जांच एवम दवा चश्मा आदि का निःशुल्क वितरण किया गया। आयुर्वेदिक, होमियोपैथिक और योग के डाक्टर द्वारा भी परामर्श दिए गए। सुगर, ब्लडप्रेशर आदि की जांच भी निःशुल्क संपन्न हुई। स्वास्थ्य शिविर में पांच सौ की सेहत जांची गई है। निशुल्क स्वास्थ्य शिविर में डा.डीके गुप्ता, डा.सौरभ द्विवेदी, डा. तनु मिश्रा, डा.एके पाठक, डा.दुर्गेश पांडेय और डा. उमेश उपाध्याय व उनकी टीम ने 500 लोगों की सेहत जांची, जरूरी परामर्श और दवाएं वितरित की गईं । इस दौरान लोगों को बूस्टर डोज वैक्सीन भी लगाई गई।
दुबौली दूबे गांव में 30 गो सेवक सम्मानित किए गए :-
देसी गायों का पालन, संरक्षण व संवर्धन देश के विकास के लिए ना केवल आध्यात्मिक रूप से बल्कि विभिन्न अन्य रूपों से भी आवश्यक है। देसी गायों को पालने वाला हर पशुपालक न केवल पशु सेवा करता है बल्कि पशुपालन के माध्यम से राष्ट्र सेवा भी करता है। यह बातें पशुपालक धौरहरा निवासी अवधेश पांडेय ने रविवार को दुबौली दुबे गांव में राजेश दुबे की द्वितीय पुण्यतिथि के अवसर पर आयोजित पशुपालक सम्मान समारोह को संबोधित करते हुए कही। उन्होंने कहा कि देसी गाय पालन करना केवल दूध बल्कि दही, घी, गोबर, मूत्र सब कुछ उपयोगी है। उन्होंने गाय के साथ-साथ विभिन्न पेड़ों पौधों की उपयोगिता पर विस्तार से प्रकाश डाला। इस मौके पर सनातन धर्म सभा की तरफ से सर्व श्री राजेंद्र सिंह, अनिल कुमार, जोखन लाल, जगदीश मिश्रा, रामदयाल, ओंकार मिश्रा, शक्ति शरण उपाध्याय, संध्या दीक्षित सहित 30 गो सेवकों को सम्मानित किया गया।
300 आम्रपाली आम के पौधों का वितरण :-
शिविर में एस पी ऑटो व्हील जान डियर ,बड़े बन ,बस्ती की तरफ से 300 आम्रपाली आम के पौधे भी वितरित किए गए। आज के विविध आयोजनों में सहभागिता के लिए श्री एस पी दुबे और श्री अखिलेश दुबे ने आगंतुकों के प्रति आभार ज्ञापित किया। इस दौरान विनोद शुक्ल, महादेव दुबे, सहदेव दुबे, विंध्याचल तिवारी, परमेश्वर तिवारी, बुद्धीसागर दुबे, राकेश दुबे, दुर्गेश दुबे, राखी दुबे, गिरजेश दुबे, आशीष दुबे, रोहन दुबे, आकाश दुबे शौर्य, विभु, राखी, कुटुंबी,अवधेश तिवारी, अनिल पांडे, राकेश दुबे, दिग्विजय चौबे, अनिल उपाध्याय मौजूद रहे । पूरे दिन चले इन कार्यक्रम का संचालन श्री पंकज त्रिपाठी ने किया।
सैकड़ों संतो ने भजन - पूजा कर बनाई एक अलौकिक दृश्य:-
प्रायः हर आध्यात्मिक और धार्मिक आयोजनों में साधु - संत और गरीब ब्राह्मण भारी संख्या में समलीत होते हैं।आज के आयोजन में भी कई दिन पहले से ही भारी संख्या में साधु - संत शाम होते ही देर रात तक अखंड हरि - कीर्तन और भजन गा - गाकर एक दिव्य अलौकिक वातावरण उत्पन्न कर रखे थे। जमीन पर आसान जमाए गेरूवे परिधान में ये महान संत अपने मधुर और भक्ति मय वाणी से वातावरण को दिव्य बना रखे थे। इससे श्री राम सनेही सेवा सदन और दुबौली दूबे गांव एक तीर्थ जैसा लग रहा था।
Friday, July 15, 2022
चातुर्मास में अनेक बंदिशें और अनेक प्रकार की साधनाएं भी डा. राधे श्याम द्विवेदी
Thursday, July 14, 2022
माताजी की पंचम पुण्यतिथि
Monday, July 11, 2022
योगिराज देवरहा बाबा की चित्र - विचित्र गाथा डा. राधे श्याम द्विवेदी
बस्ती बाबा जी की जन्म और कुलभूमि रही :-
भारत देश में कई चमत्कारिक बाबा और सिद्ध पुरुष अवतरित हुए हैं। उनमें से एक प्रमुख नाम देवरहा बाबा काआता है। बताया जाता है कि बाबा के पूर्वज उत्तर प्रदेश के जिला बस्ती के उमरिया गांव के मूल निवासी थे। बाबा के समय भारत में ब्रिटिश सरकार थी। बस्ती और देवरिया सब गोरखपुर सरकार के अधीन थे।1801 में बस्ती तहसील मुख्यालय बन गया था जो 1865 में जिले का मुख्यालय बना था। 1997 से बस्ती 3 जिलों वाला मंडल कार्यालय बन चुका है। देवरिया जनपद 16 मार्च 1946 को गोरखपुर जनपद का कुछ पूर्व-दक्षिण भाग लेकर बनाया गया था। वर्तमान में देवरिया में 2 जिले बने हुए हैं।सिद्ध योगी देवरहा बाबा की असली जन्म तिथि अज्ञात है।उनका जन्म उत्तर प्रदेश के तत्कालीन गोरखपुर तथा वर्तमान बस्ती जिले के दुबौलिया ब्लाक/ थाना के अंतर्गत सरयू तट स्थितउमरिया नामक गांव में हुआ था, उनका बचपन का नाम जनार्दन दत्त दूबे था। उनके पिता का नाम पं. राम यश दूबे था उनके तीन पुत्र थे सूर्यबली देवकली और जनार्दन। पिता जी अपने तीनों बेटों से खेती का काम ही कराना चाहते थे । जनार्दन सबसे छोटे भाई थे।तरुणाई में ही वे बड़ी बहन का उलाहना पाकर सरयू पार कर रामनगरी आ पहुंचे। यहां कुछ दिन निवास करने के बाद वे संतों की टोली के साथ उत्तराखंड चले गए। वहां पहुंचे संतों के मार्गदर्शन में योग एवं साधना की बारीकी सीखी। समाधि को उपलब्ध होते इससे पूर्व दीक्षा की आवश्कता महसूस हुई और वे दैवी प्रेरणा से काशी पहुंचे। दीक्षा के बाद उन्हें गुरु आश्रम में भगवान की पूजा का दायित्व मिला। भदौनी निवासी पं. गया प्रसाद ज्योतिषी के यहां रहकर वे संस्कृत व्याकरण का अध्ययन करने लगे थे।कई वर्ष काशी में अध्ययनरत रहने के बाद जनार्दन दत्त स्वामी निरंजन देव सरस्वती के साथ हरिद्वार आ गये । हरिद्वार कुम्भ मेले के दौरान जनार्दन दत्त का अपने पिता पं. राम यश दूबे से अचानक मिलना हो गया। पिता जी को देखते ही जनार्दन दत्त भयभीत हो गये उनके घर चलने के लिए कहने पर वह उनके साथ चलने के लिए तैयार भी हो गये थे। रास्तें में पिताजी की इच्छा अयोध्या में राम जी के दर्शन की हुई। जहां अचानक पिता जी का निधन हो गया। रामयश जनार्दन को लेकर घर की ओर चल पड़े मगर रास्ते में ही उनकी मृत्यु हो गई ।पिता को वहीं छोड़कर जनार्दन उमरिया गांव पहुंचे और अपने भाइयों को लेकर अयोध्या आए वहां पर पिता का अंतिम संस्कार किया पिताजी के निधन के बाद उनके परिवार के विरोधियों ने उन्हें आतंकित करना प्रारम्भ कर दिया। विरोधियों से बचने के लिए जनार्दन दत्त को अपनी जन्म भूमि छोड़नी पड़ी।
ब्रह्म ज्ञान की प्राप्ति देवरिया में:-
उसके बाद जनार्दन पुनः ब्रह्म की खोज में वापस चले गए ब्रह्म की तलाश में निकले जनार्दन दुबे की ज्योति तप साधना योग से पूरे देश में फैलने लगी पूरे देश में बड़ी बड़ी हस्तियां उनकी तरफ चली आ रही थी उन्नीसवीं शताब्दी के दूसरे दशक की बात है पूरे उत्तर प्रदेश में भीषण अकाल पड़ा था । अकाल से सर्वाधिक प्रभावित गोरखपुर जिला था। आज का देवरिया जिला उन दिनों गोरखपुर जिले में ही था। भयंकर सूखे के कारण पूरे जनपद में त्राहि त्राहि मची थी। देवरिया में सरयू नदी के तट पर एक प्राचीन गांव मईल है। एक दिन अकाल ग्रस्त ग्रामवासी सरयू नदी के तट पर एकत्रित होकर भगवान से प्रार्थना कर रहे थे। देवरा (एक प्रकार का छोटा पौधा) के घने जंगलों में लम्बे समय तक बाबाजी को रुकना व छिपना पड़ा था।इससे उनके केश बाल और दाढ़ी बहुत बढ़ गये थे कोई उस जंगल में अचानक जनार्दन दत्त को देखकर उन्हे "देवरा बाबा" कह भय से वहां से भाग गया था। नदी की रेत को जनभाषा में भी देवरा कहते हैं ।वहां रहने के कारण बाबा को देवरहा बाबा कहा जाने लगा। अवधूत वेषधारी जटाधारी एक तपस्वी महापुरुष नदी तट पर प्रकट हुए उनका उन्नत ललाट मुख मंडल पर देदीप्यमान तेज आंखों में सम्मोहन देखकर उपस्थित जन अपने को रोक न सके और उस तपस्वी के सामने साष्टांग लेट आए ।यह सूचना पूरे गांव में फैल गई। देखते देखते गांव के समस्त नर- नारी दौड़कर आ गए ।कुछ ही देर में बाबा के सामने एक विशाल जनसमुदाय इकट्ठा हो गया ।बाबा सरयू नदी के जल से प्रकट हुए थे इसलिए "जलेसर महाराज" के नाम से जय - जयकार के नारे लगने लगे। बाबा से सभी मनुष्यों ने अपनी अपनी विपत्तियां कहीं ।बाबा ने सबकी बातें प्रेम पूर्वक सुनी और कहा तुम लोग घर जाओ ।शीघ्र ही वर्षा होगी ।वे बाबा का गुणगान करते हुए अपने घरों को लौट पड़े और शाम होते ही पूरा आकाश बादलों से भर गया देखते ही देखते मूसलाधार वर्षा होने लगी। देवरा ( नदी के रेत ) की जगह से प्रकट होने के कारण " देवरहा बाबा" कहे जाने लगे । "जलेसर बाबा" ही आगे चलकर " देवरहा बाबा" कहलाए।
मचान पर आवास बना:-
इस नये परिचय से नयी पहचान लेकर वे अपने गुरु स्वामी निरंजन देव सरस्वती के सानिध्य में रहकर योग साधना में बर्षों तक संलग्न रहे। देवरहा बाबा कठोर साधना करते हुए एषणा शक्ति अर्जित करने के बाद तत्कालीन गोरखपुर तथा वर्तमान देवरिया जिले के मइल ग्राम में सरयू तट पर मचान बनाकर रहने लगे थे। बाबा मथुरा में यमुना के किनारे रहा करते थे। यमुना किनारे लकडिय़ों की बनी एक मचान उनका स्थाई बैठक स्थान था। बाबा इसी मचान पर बैठकर ध्यान, योग किया करते थे। देवरहा बाबा से जब पूछा गया कि वो धरती से इतने ऊपर क्यों रहते हैं? तो उन्होंने बताया कि शिला, अग्नि और जल से चार हाथ ऊपर रहना चाहिए। इस वजह से मैं मचान बनाकर रहता हूं।भक्तों को दर्शन और उनसे संवाद भी यहीं से होता था। कहा जाता है कि जिस भक्त के सिर पर बाबा ने मचान से अपने पैर रख दिए, उसके वारे-न्यारे हो जाते थे ।जब उनकी इच्छा होती तो वह काशी, मथुरा , अयोध्या, वृन्दाबन व झूसी आदि स्थानों पर मंच बनवाकर वहीं लागों को दर्शन तथा आशीर्वाद देने लगे थे। उन्हें सामान्य शिक्षा होने के बावजूद वेद पुरान गीता रामायण तथा मनुस्मृति आदि अच्छे ग्रंथों का अच्छा ज्ञान था। उन्हें कई विदेशी भाषायें भी आती थी। विदेशी ज्ञानार्थियों को वह उनकी ही भाषा में बात करते थे।
सही आयु का आकलन नहीं :-
भारत के इतिहास में कई साधू संत ऐसे हुए है जो किसी परिचय के मोहताज नही जिनकी कृति से विश्व आज तक गुंजायमान है। डॉ. राजेन्द्र प्रसाद, महामना मदन मोहन मालवीय, पुरुषोत्तमदास टंडन, जैसी विभूतियों ने पूज्य देवरहा बाबा के समय-समय पर दर्शन कर अपने को कृतार्थ अनुभव किया था। देवरहा बाबा की सही आयु का आकलन भी नहीं है। 19 जून सन् 1990 को योगिनी एकादशी के दिन अपना प्राण त्यागने वाले इस बाबा के जन्म के बारे में संशय है। (बाबा के संपूर्ण जीवन के बारे में अलग- अलग मत है, कुछ लोग उनका जीवन 250 साल तो कुछ लोग 500 साल मानते है।
श्रद्धालु को प्रसाद का वितरण:-
श्रद्धालुओं के कथनानुसार बाबा अपने पास आने वाले प्रत्येक व्यक्ति से बड़े प्रेम से मिलते थे और सबको कुछ न कुछ प्रसाद अवश्य देते थे। प्रसाद देने के लिए बाबा अपना हाथ ऐसे ही मचान के खाली भाग में रखते थे और उनके हाथ में फल, मेवे या कुछ अन्य खाद्य पदार्थ आ जाते थे जबकि मचान पर ऐसी कोई भी वस्तु नहीं रहती थी। श्रद्धालुओं को कौतुहल होता था कि आखिर यह प्रसाद बाबा के हाथ में कहाँ से और कैसे आता है ?
अष्टांग योग में विशेष पारंगत :-
परमपूज्य महर्षि पातंजलि द्वारा प्रतिपादित अष्टांग योग में पारंगत देवरहा बाबा थे। लोगों में विश्वास है कि, बाबा जल पर चलते भी थे और अपने किसी भी गंतव्य स्थान पर जाने के लिए उन्होंने कभी भी सवारी नहीं की और ना ही उन्हें कभी किसी सवारी से कहीं जाते हुए देखा गया। बाबा हर साल कुंभ के समय प्रयाग आते थे। मार्कण्डेय सिंह के अनुसार, वह किसी महिला के गर्भ से नहीं बल्कि पानी से अवतरित हुए थे। यमुना के किनारे वृन्दावन में वह 30 मिनट तक पानी में बिना सांस लिए रह सकते थे। उनको जानवरों की भाषा समझ में आती थी। खतरनाक जंगली जानवारों को वह पल भर में काबू कर लेते थे।लोगों का मानना है, कि बाबा को सब पता रहता था कि कब, कौन, कहाँ उनके बारे में चर्चा हुई। वह अवतारी व्यक्ति थे। उनका जीवन बहुत सरल और सौम्य था। वह फोटो कैमरे और टीवी जैसी चीजों को देख अचंभित रह जाते थे। वह उनसे अपनी फोटो लेने के लिए कहते थे। लेकिन आश्चर्य की बात यह थी कि उनका फोटो कभी नहीं बनता था। वह नहीं चाहते तो रिवाल्वर से गोली नहीं चलती थी। उनका निर्जीव वस्तुओं पर नियंत्रण था।
चमत्कारिक दावा नहीं पर चमत्कार ही चमत्कार दिखा :-
अपनी उम्र, कठिन तप और सिद्धियों के बारे में देवरहा बाबा ने कभी भी कोई चमत्कारिक दावा नहीं किया, लेकिन उनके इर्द-गिर्द हर तरह के लोगों की भीड़ ऐसी भी रही जो हमेशा उनमें चमत्कार खोजते देखी गई। अत्यंत सहज, सरल और सुलभ बाबा के सानिध्य में जैसे वृक्ष, वनस्पति भी अपने को आश्वस्त अनुभव करते रहे। भारत के पहले राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद ने उन्हें अपने बचपन में देखा था। देश-दुनिया के महान लोग उनसे मिलने आते थे और विख्यात साधू-संतों का भी उनके आश्रम में समागम होता रहता था। उनसे जुड़ीं कई घटनाएं इस सिद्ध संत को मानवता, ज्ञान, तप और योग के लिए विख्यात बनाती हैं।कोई 1987 की बात होगी, जून का ही महीना था। वृंदावन में यमुना पार देवरहा बाबा का डेरा जमा हुआ था। अधिकारियों मेंअफरातफरी मची थी। प्रधानमंत्री राजीव गांधी को बाबा के दर्शन करने आना था। प्रधानमंत्री के आगमन और यात्रा के लिए इलाके की मार्किंग कर ली गई। आला अफसरों ने हैलीपैड बनाने के लिए वहां लगे एक बबूल के पेड़ की डाल काटने के निर्देश दिए। भनक लगते ही बाबा ने एक बड़े पुलिस अफसर को बुलाया और पूछा कि पेड़ को क्यों काटना चाहते हो ? अफसर ने कहा, प्रधानमंत्री की सुरक्षा के लिए जरूरी है. बाबा बोले, तुम यहां अपने पीएम को लाओगे, उनकी प्रशंसा पाओगे, पीएम का नाम भी होगा कि वह साधु-संतों के पास जाता है, लेकिन इसका दंड तो बेचारे पेड़ को भुगतना पड़ेगा! वह मुझसे इस बारे में पूछेगा तो मैं उसे क्या जवाब दूंगा? नही ! यह पेड़ नहीं काटा जाएगा। अफसरों ने अपनी मजबूरी बताई कि, यह दिल्ली से आए अफसरों का आदेश है, इसलिए इसे काटा ही जाएगा और फिर पूरा पेड़ तो नहीं कटना है, इसकी एक टहनी ही काटी जानी है, मगर बाबा जरा भी राजी नहीं हुए।उन्होंने कहा कि, यह पेड़ होगा तुम्हारी निगाह में, मेरा तो यह सबसे पुराना साथी है, दिन रात मुझसे बतियाता है, यह पेड़ नहीं कट सकता। इस घटनाक्रम से बाकी अफसरों की दुविधा बढ़ती जा रही थी। आखिर बाबा ने ही उन्हें तसल्ली दी और कहा कि घबड़ाओ मत, अब पीएम का कार्यक्रम टल जाएगा। तुम्हारे पीएम का कार्यक्रम मैं कैंसिल करा देता हूं। आश्चर्य कि, दो घंटे बाद ही पीएम आफिस से रेडियोग्राम आ गया की प्रोग्राम स्थगित हो गया है। कुछ हफ्तों बाद राजीव गांधी वहां आए, लेकिन पेड़ नहीं कटा।
हठयोग सीखने लोग आते थे :-
उनके भक्तों में जवाहर लाल नेहरू, लाल बहादुर शास्त्री , इंदिरा गांधी जैसे चर्चित नेताओं के नाम हैं। उनके पास लोग हठयोग सीखने भी जाते थे। सुपात्र देखकर वह हठयोग की दसों मुद्राएं सिखाते थे। योग विद्या पर उनका गहन ज्ञान था। ध्यान, योग, प्राणायाम, त्राटक समाधि आदि पर वह गूढ़ विवेचन करते थे। कई बड़े सिद्ध सम्मेलनों में उन्हें बुलाया जाता, तो वह संबंधित विषयों पर अपनी प्रतिभा से सबको चकित कर देते। लोग यही सोचते कि इस बाबा ने इतना सब कब और कैसे जान लिया? ध्यान, प्रणायाम, समाधि की पद्धतियों के वह सिद्ध थे ही। धर्माचार्य, पंडित, तत्वज्ञानी, वेदांती उनसे कई तरह के संवाद करते थे। उन्होंने जीवन में लंबी लंबी साधनाएं कीं। जन कल्याण के लिए वृक्षों-वनस्पतियों के संरक्षण, पर्यावरण एवं वन्य जीवन के प्रति उनका अनुराग जग जाहिर था।
बाबा के आशीर्वाद कांग्रेस प्रचंड बहुमत प्राप्त किया:-
देश में आपातकाल के बाद हुए चुनावों में जब इंदिरा गांधी हार गईं तो वह भी देवरहा बाबा से आशीर्वाद लेने गईं। उन्होंने अपने हाथ के पंजे से उन्हें आशीर्वाद दिया। वहां से वापस आने के बाद इंदिरा ने कांग्रेस का चुनाव चिह्न "जोड़ी बैल" से हटाकर "हाथ का पंजा" निर्धारित कर दिया। इसके बाद 1980 में इंदिरा के नेतृत्व में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने प्रचंड बहुमत प्राप्त किया और वह देश की प्रधानमंत्री बनीं।वहीं, यह भी मान्यता है कि इन्दिरा गांधी आपातकाल के समय कांची कामकोटि पीठ के शंकराचार्य स्वामी चन्द्रशेखरेन्द्र सरस्वती से आर्शीवाद लेने गयीं थी। वहां उन्होंने अपना दाहिना हाथ उठाकर आर्शीवाद दिया और "हाथ का पंजा" पार्टी का चुनाव निशान बनाने को कहा।
खेचरी मुद्रा पर बाबा की सिद्धि:-
जनश्रूति के मुताबिक, वह खेचरी मुद्रा की वजह से आवागमन से कहीं भी कभी भी चले जाते थे। उनके आस-पास उगने वाले बबूल के पेड़ों में कांटे नहीं होते थे। चारों तरफ सुंगध ही सुंगध होता था। देवरहा बाबा को खेचरी मुद्रा पर सिद्धि थी। जिस कारण वे अपनी भूख और आयु पर नियंत्रण प्राप्त कर लेते थे। बाबा महान योगी और सिद्ध संत थे। उनके चमत्कार हज़ारों लोगों को झंकृत करते रहे। आशीर्वाद देने का उनका ढंग निराला था। मचान पर बैठे-बैठे ही अपना पैर जिसके सिर पर रख दिया, वो धन्य हो गया। पेड़-पौधे भी उनसे बात करते थे। उनके आश्रम में बबूल तो थे, मगर कांटे विहीन। यही नहीं यह खुशबू भी बिखेरते थे। उनके दर्शनों को प्रतिदिन विशाल जनसमूह उमड़ता था। बाबा भक्तों के मन की बात भी बिना बताए जान लेते थे। उन्होंने पूरा जीवन अन्न नहीं खाया। दूध व शहद पीकर जीवन गुजार दिया। श्रीफल का रस उन्हें बहुत पसंद था।
बाबा की ख्याति दूर - दूर तक फैला था :-
बाबा की ख्याति इतनी कि जार्ज पंचम जब भारत आया तो अपने पूरे लाव लश्कर के साथ उनके दर्शन करने देवरिया जिले के दियारा इलाके में मइल गांव तक उनके आश्रम तक पहुंच गया। दरअसल, इंग्लैंड से रवाना होते समय उसने अपने भाई से पूछा था कि, क्या वास्तव में इंडिया के साधु संत महान होते हैं। प्रिंस फिलिप ने जवाब दिया- हां, कम से कम देवरहा बाबा से जरूर मिलना। यह सन 1911 की बात है। जार्ज पंचम की यह यात्रा तब विश्वयुद्ध के मंडरा रहे माहौल के चलते भारत के लोगों को बरतानिया हुकूमत के पक्ष में करने की थी। उससे हुई बातचीत बाबा ने अपने कुछ शिष्यों को बतायी भी थी, लेकिन कोई भी उस बारे में बातचीत करने को आज भी तैयार नहीं। डाक्टर राजेंद्र प्रसाद तब रहे होंगे कोई दो-तीन साल के, जब अपने माता-पिता के साथ वे बाबा के यहां गये थे। बाबा देखते ही बोल पड़े-यह बच्चा तो राजा बनेगा। बाद में राष्ट्रपति बनने के बाद उन्होंने बाबा को एक पत्र लिखकर कृतज्ञता प्रकट की और सन 1954 के प्रयाग कुंभ में बाकायदा बाबा का सार्वजनिक पूजन भी किया। उनके भक्त उन्हें दया का महासमुंदर बताते हैं। और अपनी यह सम्पत्ति बाबा ने मुक्त हाथ से लुटाई। जो भी आया, बाबा की भरपूर दया लेकर गया। वितरण में कोई विभेद नहीं, वर्षाजल की भांति बाबा का आशीर्वाद सब पर बरसा और खूब बरसा। मान्यता थी कि, बाबा का आशीर्वाद हर रोग की दवाई है।
बाबा की थी दिव्यदृष्ठि :-
कहा जाता है कि, बाबा देखते ही समझ जाते थे कि सामने वाले का सवाल क्या है। दिव्यदृष्ठि के साथ तेज नजर, कड़क आवाज, दिल खोल कर हंसना, खूब बतियाना बाबा की आदत थी। याददाश्त इतनी कि दशकों बाद भी मिले व्यक्ति को पहचान लेते और उसके दादा-परदादा तक का नाम व इतिहास तक बता देते, किसी तेज कम्प्युटर की तरह। बलिष्ठ कदकाठी भी थी। लेकिन देह त्याहगने के समय तक वे कमर से आधा झुक कर चलने लगे थे। उनका पूरा जीवन मचान में ही बीता। लकडी के चार खंभों पर टिकी मचान ही उनका महल था, जहां नीचे से ही लोग उनके दर्शन करते थे। मइल में वे साल में आठ महीना बिताते थे। कुछ दिन बनारस के रामनगर में गंगा के बीच, माघ में प्रयाग, फागुन में मथुरा के मठ के अलावा वे कुछ समय हिमालय में एकांतवास भी करते थे। खुद कभी कुछ नहीं खाया, लेकिन भक्तनगण जो कुछ भी लेकर पहुंचे, उसे भक्तों पर ही बरसा दिया। उनका बताशा-मखाना प्राप्त करने के लिए सैकडों लोगों की भीड हर जगह जुटती थी।
जीवनभर अन्न ग्रहण नहीं किया:-
देवरहा बाबा ने जीवनभर अन्न ग्रहण नहीं किया। वे यमुना का पानी पीते थे अथवा दूध, शहद और श्रीफल के रस का सेवन करते थे। तो क्या इसका मतलब उन्हें भूख नहीं लगती थी। इस प्रश्न का जवाब कई वैज्ञानिक अध्ययनों में मिलता है। एक अध्ययन के अनुसार अगर कोई व्यक्ति ब्रह्माण्ड की ऊर्जा से शरीर के लिए आवश्यक एनर्जी प्राप्त कर ले और उसे भूख ना लगे यह संभव है। साथ ही अगर कोई व्यक्ति ध्यान क्रिया करे और उसकी लाइफस्टाइल संयत और संतुलित हो तो भी लम्बे जीवन की अपार संभावनाएं होती हैं। इसके अतिरिक्त आयु बढ़ाने के लिए किए जाने वाली योग क्रियाएं करे, तो भी लम्बा जीवन सपना नहीं। हालांकि अध्ययन के अनुसार इन तीनों चीजों का एक साथ होना आवश्यक है।
एक समय में दो स्थानों पर उपस्थिति :-
बाबा देवरहा एक साथ दो अलग जगहों पर भी प्रकट हो सकते थे।कहा जाता है कि बाबा एक साथ दो अलग-अलग जगहों पर उपस्थित होने का दावा करते थे। इसके पीछे पतंजलि योग सूत्र में वर्णित सिद्धी थी। बाबा के पास इस तरह की कई और सिद्धियां भी थी। इनमें से एक और सिद्धी थी पानी के अंदर बिना सांस लिए आधे घंटे तक रहने की। इतना ही नहीं बाबा जंगली जानवरों की भाषा भी समझ लेते थे। कहा जाता है कि वह खतरनाक जंगली जानवरों को पल भर में काबू कर लेते थे। पलक झपकते ही हाथ में आ जाता था कुछ भी बाबा देवरहा के बारे में कहा जाता है कि उनको कहीं भी आवागमन की सिद्धी प्राप्त थी। वे पल भर में कहीं भी चले जाते थे। इसकी वजह खेचरी मुद्रा को माना जाता था। हालांकि बाबा को किसी ने कहीं आते-जाते नहीं देखा था। उनके अनुयायियों के अनुसार बाबा के पास जो भी आता उसे वे प्रसाद जरूर देते थे। बाबा मचान पर बैठे-बैठे अपना हाथ मचान के खाली भाग में करते और उनके हाथ में मेवे, फल और कई अन्य तरह के खाद्य पदार्थ आ जाते थे। कहा तो यह भी जाता है कि बाबा के रहने के स्थान के आस-पास के बबूल के पेड़ों के कांटे भी नहीं होते थे।
दिव्यदृष्टि से करते थे समाधान :-
बाबा के अनुयायियों के अनुसार बाबा को दिव्यदृष्टि की सिद्धी प्राप्त थी। बाबा बिना कहे-सुने ही अपने पास आने वालों की समस्याओं और उनकी मन की बात जान लिया करते थे। याद्दाश्त उनकी इतनी गजब की थी कि वे दशकों बाद भी किसी व्यक्ति से मिलते थे उसके दादा-परदादा तक के नाम और इतिहास बता दिया करते थे।
भक्तों में नेता भी रहे बाबा जी:-
बाबा अपनी युवावस्था में मजबूत कद-काठी के हुआ करते थे, लेकिन वृद्धावस्था में उनकी कमर झुक गई थी। चलते समय उन्हें कमर को झुका के चलना पड़ता था। बाबा के भक्तों में ना केवल आम नागरिक थे बल्कि दिग्गज राजनीतिक हस्तियां भी थीं। इनमें से प्रमुख हैं, पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री, इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, पूर्व गृह मंत्री नेता बूटा सिंह, मौजूदा कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और देश के पहले राष्ट्रपति डॉ राजेन्द्र प्रसाद। ये कई बार बाबा का आशीर्वाद लेने के लिए उनके पास जाते थे। हालांकि ज्यादातर समय ये नेता चुनावों के दौरान बाबा के दर्शनों के लिए गए। शायद इसके पीछे बाबा से जीत का आशीर्वाद लेना ही प्रमुख वजह रही हो।
जानवरों और पक्षियों की भाषा को भी समझते थे:-
देवरहा बाबा के भक्त बताते हैं कि बाबा जल पर भी चलते थे, उन्हें प्लविनी सिद्धि प्राप्त थी। किसी भी स्थान पर पहुंचने के लिए उन्होंने कभी सवारी नहीं की। मान्यता है कि मचान पर कोई प्रसाद नहीं होने के बाद भी वह भक्तों को अपने हाथ से प्रसाद वितरित किया करते थे। साथ ही भक्तों के अनुसार वह जानवरों और पक्षियों की भाषा को भी समझते थे। साथ ही जंगली जानवरों को अपने वश में कर लेते थे।
पूरी दुनिया में देवरहवां बाबा के अनेक आश्रम:-
देवरहवां आश्रम पूरी दुनिया में है जिसमे प्रमुख रूप से यूपी के देवरिया जिले के सलेमपुर के पास मईल में सरयू नदी के किनारे, काशी में गंगा जी के किनारे अस्सी घाट पर द्वारिकाधीश मठ, विंध्य पर्वत मालाओं पर स्थित अमरावती पर्वत, नर्मदा उदगम स्थल अमरकंटक, यमुना नदी के किनारे वृंदावन और तिब्बत पर्वत में अति दुर्लभ निर्जन स्थान ज्ञानगंज इत्यादि में है।तिब्बत स्थित ज्ञानगंज में ऋषि मण्डल है जहां देवरहा बाबा अब भी अज्ञात रूप में विद्यमान हैं।
देवरहा बाबा का गुरु मंत्र:-
देवरहा बाबा श्री राम और श्री कृष्ण को एक मानते थे और भक्तो को कष्ट से मुक्ति के लिए कृष्ण मंत्र भी देते थे। प्रणत: क्लेश नाशाय, गोविन्दाय नमो-नम:”। बाबा कहते थे-“जीवन को पवित्र बनाए बिना, ईमानदारी, सात्विकता-सरसता के बिना भगवान की कृपा प्राप्त नहीं होती। अत: सबसे पहले अपने जीवन को शुद्ध-पवित्र बनाने का संकल्प लो।
पांच साल पहले ही बता दिया था उनकी मृत्यु का समय :-
कहा जाता है कि इलाहाबाद हाईकोर्ट के एक वकील ने दावा किया था कि उसके परिवार की सात पीढिय़ों ने देवहरा बाबा को देखा है। उनके अनुसार देवहरा बाबा ने अपनी देह त्यागने के 5 साल पहले ही मृत्यु का समय बता दिया था। ऐसे ही कई और सुनी-सुनाई बाते हैं जो बाबा देवहरा के बारे में कही जाती हैं। हालांकि उन्होंने स्वयं इस तरह का दावा कभी नहीं किया। उनके अनुयायियों ने ही अपने तरीके से तथ्य बनाए और उनका प्रचार आगे से आगे होता रहा। अचानक 11 जून 1990 को उन्होंने दर्शन देना बंद कर दिया। लगा जैसे कुछ अनहोनी होने वाली है। मौसम तक का व्यवहार बदल गया। यमुना की लहरें तक बेचैन होने लगीं। मचान पर बाबा त्रिबंध सिद्धासन पर बैठे ही रहे. डॉक्टरों की टीम ने थर्मामीटर पर देखा कि, पारा अंतिम सीमा को तोड निकलने पर तैयार है। 19 जून को मंगलवार के दिन योगिनी एकादशी थी। आकाश में काले बादल छा गये, तेज आंधियां तूफान ले आयीं। यमुना जैसे समुंदर को मात करने पर उतावली थी। लहरों का उछाल बाबा की मचान तक पहुंचने लगा। और इन्हीं सबके बीच शाम चार बजे बाबा का शरीर स्पंदनरहित हो गया। भक्तों की अपार भीड भी प्रकृति के साथ हाहाकार करने लगी। बाबा ने शारीर त्याग दिया था। अपने जीवन के अन्तिम दिनों मे वह मथुरा में रहकर पवित्र यमुना तट पर 19 जून 1990 को वह इस धरा धाम से सदा सदा के लिए चले गये। हम उस परम पुण्य आत्मा को हृदय से नमन करते हैं और अपनी श्रद्धा समर्पित करते हैं।
Wednesday, July 6, 2022
उद्धार की प्रतीक्षा में अयोध्या का पौराणिक त्रेता के ठाकुर का असली प्राचीन मंदिर ( नौरंग शाह मस्जिद )अब खंडहर बना
प्राचीन त्रेतानाथ ठाकुर मंदिर पर बना नौरंग शाह मस्जिद
वर्तमान में राम की पैड़ी अयोध्या में सरयू नदी के तट पर अहिल्याबाई घाट और मंदिर के पश्चिम ओर यह त्रेता के ठाकुर पर एक प्राचीन मंदिर स्थित था । इसके उत्तरी भाग पर हनुमत कृपा धाम ,गोपाल पुस्तकालय और राम दल ट्रस्ट की आफिस है। यह काफी बड़े भूभाग को घेर रखा है ।इसका मुकदमा भी बहुत दिनों से दो सम्प्रदाय के बीच चल रहा है। लगता नही की इसका जल्द उद्धार हो पाएगा। यह बहुत जाग्रत धर्म स्थान रहा।जिसे आक्रांताओं द्वारा तोड़ा माना जाता है कि इस मंदिर में भगवान राम सीता, लक्ष्मण, हनुमान, भरत और सुग्रीव सहित कई मूर्तियों को रखा गया था जो प्राचीन समय में काले रेत के पत्थरों से उकेरी गई थीं। इस मंदिर के बारे में यह भी कहा जाता है कि यह वही जगह है जहां पर श्री राम ने अश्वमेध यज्ञ किया था। यह मंदिर कार्तिक के पवित्र महीने के एकादशी ग्यारहवें दिन खुलता था। यहां भक्तों की भारी भीड़ भगवान राम का आशीर्वाद लेने के लिए यहां आती है। इस स्थान पर एकादशी के दिन पारंपरिक रीति-रिवाजों के साथ रंगारंग समारोह मनाया जाता था जो स्थानीय लोगो के साथ साथ बड़ी संख्या में श्रद्धालुयों और पर्यटकों को अपनी और आकर्षित करता रहा है।
मूल मंदिर का निर्माण :-
प्राचीनकाल में कन्नौज नरेश राजा जयचंद ने बारहवीं सदी में इस त्रेता के ठाकुर मंदिर का निर्माण कराया था। मुगल शासक औरंगजेब का ही दूसरा नाम नौरंगशाह था। त्रेता के मंदिर को उसी समय ध्वस्त कर मस्जिद नौरंग शाह मस्जिद बनाई गई थी। उसने 1969 ईस्वी में चन्द्रहरि मंदिर को ध्वस्त कर नौरंग शाह मस्जिद बनवाया था। यहां से राजा जयचंद का एक प्रस्तर अभिलेख प्राप्त हुआ था। जो राज्य संग्रहालय लखनऊ में सुरक्षित है। इससे स्पष्ट है कि राजा जयचंद ने त्रेता के ठाकुर मंदिर की स्थापना वही किया था जहां प्रभु श्रीराम ने अश्वमेव यज्ञ किया था।
नौरंग शाह मस्जिद का निर्माण :- प्राचीन मंदिर को मुगलकाल में औरंगजेब ने ध्वस्त कराकर उस स्थान पर नौरंग शाह मस्जिद का निर्माण करा दिया था। इसके बाद इसके बगल में त्रेतानाथ का एक छोटा सा मंदिर बना लिया गया l इसे कालू (कुल्लू हिमाचल प्रदेश) के राजा ने पुराने मंदिर से 50 मीटर दूरी पर त्रेता के ठाकुर के नाम पर दूसरे मंदिर का निर्माण कराया था। इन दावों की पुष्टि फैजाबाद गजेटियर के पृष्ठ संख्या 353, अवध गजेटियर पृष्ठ सात तथा यूरोपीय यात्रियों के प्रतिवेदन से भी होती है। डच इतिहासकार हंशवेकर (अयोध्या पृष्ठ संख्या 53 व 54 ) ने इसके निर्माण की तिथि वर्ष 1670 बताई है। वर्तमान समय में ये प्रतिमा परिसर के कोशल संग्रहालय में संरक्षित की गई है। स्वर्गद्वार मोहल्ले का नाम भी आक्रांताओं ने बदलकर उर्दू बाजार रखा था।फिरभी पुराना नाम भी चला आ रहा है।
नए मंदिर का निर्माण
त्रेत्तानाथ का वतर्मान मंदिर हिमाचल प्रदेश के कुल्लु के राजा ने बनवाया था, जो लगभग 300 साल पहले से स्थापित है। इसे अयोध्या में स्वर्गद्वार मोहल्ले के नाम से जाना जाता है। बाद में इस मंदिर को मराठा रानी अहिल्या बाई होलकर के द्वारा पुनर्निर्मित करवाया गया था।
मंदिर में भगवान श्रीराम और उनकी पत्नी सीता माता की मूर्ति है। साथ में उनके छोटे भाई लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न, रक्षक जय-विजय, गुरू वशिष्ठ, राजा सुग्रीव और भक्त हनुमान की भी मूर्ति हैं। माना जाता है कि इस मंदिर की मूर्तियों को पुराने मंदिर से वर्तमान मंदिर में लाया गया है। मंदिर की सभी मूर्तियां एकल काले पत्थर की बनी हैं।
नौरंग शाह मस्जिद खंडहर रूप में
औरंगजेब द्वारा बनवाए गए मस्जिद आज भगनावस्था में है जो अयोध्या के सरयू नदी तट के दृश्य पर दाग नुमा धब्बा है।राम की पौड़ी जैसे महत्व पूर्ण स्थल पर ये देखने में बहुत खटकता है और सारे सौंदर्य पर पानी फेर देता है।