डा.
राधेश्याम द्विवेदी
भारत में त्रिस्तरीय पंचायत
व्यस्था की गयी है, जिससे
विकास गति अधिक रहे है,
त्रिस्तरीय पंचायत में कई पदों का सृजन किया गया है, जिसमे ब्लाक
प्रमुख का पद बहुत ही महत्वपूर्ण है। इस पद पर रहकर व्यक्ति अपने क्षेत्र का विकास
करता है। सरकार द्वारा विकास के लिए धन राशि जारी की जाती है, इस धन राशि
का सही तरह से प्रयोग ब्लॉक प्रमुख के द्वारा किया जाता है। राज्यों को जिले में
विभाजित किया जाता है। प्रत्येक जिले को ब्लॉक में विभाजित किया जाता है। ब्लॉक को
ग्राम पंचायत में विभाजित किया जाता है तथा ग्राम पंचायत को गावं में विभाजित किया
जाता है। एक जिले में कई ब्लॉक होते है।
ब्लाक प्रमुख
का चुनाव:- प्रत्येक पांच वर्ष में ग्राम प्रधान और क्षेत्र पंचायत
सदस्य का चुनाव कराया जाता है। इनका निर्वाचन गावं की जनता द्वारा किया जाता है, इसके बाद
निर्वाचित हुए क्षेत्र पंचायत सदस्यों में से किसी एक का मतदान के द्वारा ब्लॉक प्रमुख के पद पर चयन
किया जाता है। ब्लॉक प्रमुख के चुनाव में केवल क्षेत्र पंचायत सदस्य ही मतदान कर
सकते है ।
ब्लाक प्रमुख
कार्य और अधिकार:- ब्लाक प्रमुख अपना कार्य हर ब्लाके के ब्लॉक डेवलपमेंट
ऑफिसर के सहयोग से ही कर सकता है। यह सरकारी तथा स्थाई अधिकारी है। ब्लॉक
डेवलपमेंट ऑफिसर्स ब्लॉकों की योजना और विकास से संबंधित सभी कार्यक्रमों
क्रियान्यवन की निगरानी करते हैं। जिला के सभी क्षेत्रों में योजनाओं के विकास और
कार्यान्वयन के समन्वय मुख्य विकास अधिकारी (सीडीओ) द्वारा प्रदान किया गया है।
बीडीओ कार्यालय विकास प्रशासन के साथ-साथ नियामक प्रशासन के लिए सरकार का मुख्य
संचालन दल है। ब्लाक प्रमुख कार्य और अधिकार निम्नवत हैं।
1.ब्लाक
प्रमुख पंचायत समिति की बैठक का आयोजन,
अध्यक्षता तथा संचालन करता है।
2.
ब्लाक प्रमुख पंचायत समिति या स्थायी समिति के निर्णयों का कार्यान्वयन करता
है।
3.ब्लाक
प्रमुख पंचायत समिति की वित्तीय और कार्यपालिका प्रशासन पर पूर्ण नियंत्रण रखता
है।
4.
ब्लाक प्रमुख को प्राकृतिक आपदाओं से प्रभावित जान माल को तत्काल राहत देने के
लिये उसे एक वर्ष में कुल पच्चीस हजार रूपये तक की राशि स्वीकृत करने की शक्ति
प्रदान की गयी है, राशि
स्वीकृत करने के बाद उसे पंचायत समिति की अगली बैठक में स्वीकृत राशि का सम्पूर्ण
विवरण देना पड़ता है।
ब्लाक प्रमुख
का वेतन:-
अब ब्लाक प्रमुख को सात हजार
रुपये महीना मानदेय प्रदान किया जाता है,
इसके अतिरिक्त ब्लॉक प्रमुख को कई प्रकार के भत्ते प्रदान किये जाते है ।
ब्लाक प्रमुख
पद का गठनः-
कम से कम दो या दो से अधिक ग्राम
पंचायत मिल कर एक ब्लॉक का गठन करते है। इसके बाद प्रत्येक ग्राम में दो या दो से
अधिक क्षेत्र पंचायत सदस्य का निर्वाचन किया जाता है। यह संख्या गावं की आबादी पर
निर्भर करती है। इस प्रकार क्षेत्र पंचायत सदस्य मिलकर ब्लाक प्रमुख को चुनते है ।
ब्लॉक ग्रामीण विकास विभाग और पंचायती राज संस्थानों के उद्देश्य के लिए एक जिला
उप-विभाजन है। उत्तर प्रदेश के अविभाजित बस्ती जिले में पहले 32 तथा वर्तमान
विभाजित जिले में 14
विकास खंड रह गये हैं।
कप्तानगंज
बस्ती की ऐतिहासिक पृष्ठभूमिः-
ब्रिटिश सरकार ने बस्ती जिले के
पश्चिमी भाग को नियंत्रित करने के लिए छावनी में कई दशकों तक सेना की छावनी व
बैरकें बना रखी थी। कप्तानगंज जो रतास नामक एक छोटा सा गांव था , कैप्टन स्तर
के एक सैन्य अधिकारी द्वारा स्थापित सैनिक कार्यालय तथा बाजार 1861-62 तक स्थापित
हो चुका था । 1865 में
यहां तहसील तथा मुंसफी न्यायालय स्थापित हो चुके थे। 1857 की क्रांति
को जब अंग्रजों से भलीभांति संभाला तब आगे की सुव्यवस्था के लिए बस्ती तहसील
मुख्यालय को 1865 में
जिला मुख्यालय घोषित कर दिया गया। बस्ती ,
कप्तानगंज ,खलीलाबाद, डुमरियागंज
तथा बांसी नाम से 5
तहसीलें भी घोषित की गई। विशाल भूभाग तथा अमोढ़ा की सक्रियता के कारण यह क्षेत्र
अंग्रेजों से संभल नहीं पा रहा था। फलतः 1876 में
कप्तानगंज को तहसील व मंुसफी समाप्त करके हर्रैया में तहसील व मुंसफी बनाई गई ।
कप्तानगंज तहसील के भवन में वर्तमान थाना बना हुआ है। लगभग 15 सालों तक
कप्तानगंज प्रशासन का एक महत्वपूर्ण
प्रशासनिक इकाई के रूप में बना रहा । 109 ग्राम सभाओं/पंचायतों तथा 11 न्याय पंचायतों को समलित करते हुए 2 अक्टूबर 1956 को
कप्तानगंज विकास खण्ड का मुख्यालय घोषित किया गया । 1971 ई. में इस
विकास खण्ड की जनसंख्या 84,501
रही। अभी हाल ही में हर्रैया तथा कप्तानगंज का दक्षिणी भाग को काटकर दुबौलिया
बाजार नामक नया विकास खण्ड घोषित किया गया है।
कप्तानगंज के
ब्लाक प्रमुखों पर एक नजर
कप्तान गंज की इस कुर्सी पर इन
से पहले बैठने वाले लोगों से भी अवगत हो लेते हैं। इनसे पहले सात लोग इस पद पर आसीन हो चुके हैं।
स्वतंत्र भारत में पंचायती राज व्यवस्था लागू होने के बाद कप्तानगंज विकासखंड 1956 में ही
अस्तित्व में आ गया लेकिन ब्लाक प्रमुख का चुनाव पहली बार 1965 में हुआ तो
उस समय के जनप्रिय नेता पंडित सूर्य दत्त त्रिपाठी पहले प्रमुख निर्वाचित हुए जो 10फरवरी जनवरी 1976 तक अपने तीन
कार्यकाल में इस पद पर बने रहे। 10
जनवरी 1976 को
उनकी हत्या के बाद उप ब्लाक प्रमुख रहे राम लखन शर्मा को ब्लॉक प्रमुख पद का चार्ज
मिला जो 1980 तक
इस जिम्मेदारी का निर्वहन करते रहे । सन 1980 से 1983 तक चुनाव ना
होने के कारण इस पद की जिम्मेदारी तत्कालीन हरैया के उपजिलाधिकारी निभाते रहे । 1983 में हुए
चुनाव में बाबूराम दुबे का मौका मिला जो अपने दो कार्यकालो में 1995 तक इस पद पर
काबिज रहे । उस समय तक प्रमुखों का चयन ग्राम प्रधान किया करते थे । त्री स्तरीय
पंचायत राज व्यवस्था लागू होने के बाद 1995 मे
भाजपा .शासन काल मे पहली बार क्षेत्र पंचायत सदस्यों द्वारा कराए गए चुनाव में राम
शंकर यादव विजई रहे जो सन 2001तक
बने रहे । 2001 से 2005 तथा बसपा
शासन काल मे 2010 से 2015 तक इस
जिम्मेदारी के निर्वहन का मौका राजमणि चैधरी को मिला । इसी दौर मे 2005 से 2010 तक इस पद पर
शोभा चैधरी शोभायमान रही तो 2015 में
हुए चुनाव में पूर्व मंत्री रामकरन आर्य की बेटी माधुरी आर्य ने इस पद पर कब्जा कर
लिया । 2017 में
भाजपा सरकार आने के बाद से ही माधुरी आर्य के खिलाफ आवाज उठने लगी । इस वर्ष 25 फरवरी को
दूसरी बार हुए अविश्वास प्रस्ताव पर मतदान में 33 क्षेत्र पंचायत सदस्यों ने अविश्वास प्रस्ताव के पक्ष में
मतदान कर माधुरी आर्य को इस पद से अपदस्थ कर दिया था । इसके बाद वर्तमान समय में
धनमन देवी कप्तानगंज के ब्लाक प्रमुख बन ही गई हैं।
पूर्व व्लाक
प्रमुख श्री बाबूराम दूबे जी का निधन
आज दिनांक 26 नवम्वर 2019 को पूर्व
व्लाक प्रमुख श्री बाबूराम दूबे का लंबी बीमारी के बाद चलते निधन हो गया। वह पिछले
कई दिनों से काफी बीमार चल रहे थे,
जिसके चलते परिजनों ने उन्हे लखनऊ के निजी अस्पताल में भर्ती कराया था, जहां आज उन्होंने अंतिम सांस ली। उनका पार्थिव शरीर देर रत दुबौली दुबे ले आया गया , २७ नवंबर को प्रातः अयोध्या ले जाया गया जहाँ वैदिक रीति से अंतिम संस्कार सम्पन्न हुवा , इसमें ब्लॉक कप्तानगंज के अधिकारी व्यापारी तथाबस्ती जिले के अनेक गण्यमान्य व्यक्ति उपस्थित थे .स्व. दूबे ग्राम दुवौैली
दूबे के मूल निवासी थे.जीनका जन्म ३१-१२-१९५२ में दुबौली दुबे में हुवा था . उनके पिता स्व. हरि प्रसाद दूबे बहुत ही सरल व नेक स्वभाव
के व्यक्ति थे। वे राजनीति में बहुत ही रुचि रखते थे। इसका प्रभाव बाबूराम जी पर
पड़ाा था। यद्यपि बाबूरामजी के चाचा स्व.राम प्रसाद जी क्षेत्र के प्रतिष्ठित व
दबंग किस्म के व्यक्ति थे। पर बाबूराम जी का परिवार इससे विल्कुल उल्टा था तथा
सादगी भरा था जो पूरे जिले में जाना जाता था। बाबूरामजी की प्रारम्भिक शिक्षा प्राइमरी पाठशाला करचोलिया
में हुआ था। माध्यमिक शिक्षा किसान उच्चतर माध्यमिक विद्यालय मरहा कटया में हुई
थी। वह बीटीसी का प्रशिक्षण प्राप्तकर पाइमरी पाठशाला मरहा में शिक्षक रहे।
प्रारम्भ में वह कप्तानगंज के विधायक के माध्यम से राजनीति में आये बादमें वह जिले
स्तर की राजनीति में भी अपना स्थान बना लिए थे। ब्लाक प्रमुख ना रहने के स्थिति
में वह जिला परिषद के सदस्य के रुप में आम जनता से जुड़े रहते थे।
अम्बिका सिंह विधायक कप्तानगंज
के प्रतिनिधि के रुप में विकास कामों व सामाजिक साराकारों से जुड़े रहते थे। दीर्घ
समय तक कांग्रेस से जुड़े रहने के बाद वह कप्तानगंज विधान सभा से विधायकी का चुनाव
भी लड़े थे। पर सफल नहीं हो सके थे। वह बसपा तथा भाजपा में भी अपनी किस्मत अजमाये
थे। उनका सबसे अच्छा समय दो कार्यकाल 1983-1995 का
व्लाक प्रमुखी था। वह काफी लोकप्रिय रहे। अपने अंतिम समय में वह मधुमेह के भयंकर
प्रभावित हो गये थे। इनकी धर्म पत्नी मिडवाइफ की जिम्मेदारी निभाती रही है। दूबेजी
की मृत्यु से बस्ती जिले का एक कर्मठ नेता हमेशा हमेशा के लिए लुप्त हो गया।
कप्तानगंज व्लाक तथा विधान सभा क्षेत्र में एसा लोकप्रिय नेता शायद ही मिल सके ।
ग्राम दुबौली दूबे तथा पठखौली राजा ग्राम पंचायत ने अपने इस लाल को भरपाई शायद ही
हो पाये। उन्होने अपने क्षेत्र में सड़को का जाल बिछा रखा था। छोटे से बड़े सभी जनता
को बव बहुत आसानी से सुलभ हो जाया करते थे। उन्होने कभी भी किसी के काम को मना
नहीं किया था।
पूर्वसंकेत व
पूर्वाभास
26
नवम्बर को प्रातः 5 व 6 बजे के बीच
इस स्तम्भ के लेखक ने एक वित्रित स्वप्न देखा था। उस समय मैं अयोध्या के पुराने
पुल के उत्तर में कटरा अयोध्या के बीच में किसी कार्य में लगा हुआ था। आसमान में
पहले रुई सा कुछ उठ उठकर उड़ रहा रहा था। एकाएक आंधी के गुबार सा प्रचण्ड आंधी से
आसमान काला सा हाने लगा था। आदमी व पशु पक्षी उड़ने से लगे थे। एक आकृति जो पहले
सूकर के रुप में बाद में कुत्ते के रुप में उभरती हुई हमारे पास कुछ ही दूरी पर
गिरती है। वह जमीन पर गिर नहीं पाती कि एक मानव की छाया उसे संभाल लेता है और
गिरने से बचा लेता है। उस समय इसे मैं एक स्वप्न तथा राम मंदिर के विगत प्रगति व
तरह तरह के विवाद की घटना से जोढ़कर लेखने लगा था।पर बाद में स्व. बाबूराम जी के
परलोग गमन की सूचना पाने पर प्रकृति कापूर्वाभास सा प्रतीत करने लगा हूं। मैं स्व.
बाबूराम के अस्वस्थ होने से भी अनजान था। पर मुझे लगा की वह एक पूर्व सूचना थी जिसे तत्काल मैं भांप
नहीं सका था। जब स्व. बाबूराम जी राजनीति के प्रारम्भिक अवस्था में रहते थे तो
कइ्र बार हमारे बस्ती के आवास पर रात बिताया करते थे। उस समय मैं एल एल बी का
छात्र हुआ करता था। बाद मे हम यदा कदा मिलते रहते थे।पिछली मुलाकात मेरे दुबौली
भागवत कथा के समय हो पायी थी। जब वे अस्वस्थ होते हुए भी अपनी उपस्थिति दर्ज कराये
थे। दिनांक ७-१२-२०१९ को उनके ब्रम्हभोज में बहुत बड़ी संख्या में उनके हितैषी उपस्थित हुए .भजपा के संसद सदस्य श्री हरीश द्विवेदी प्रमुख रहे .