Sunday, June 30, 2019

डाक्टरों की चुनोतियां और समाज में पनपता उनके प्रति नकारात्मक सोच डा. राधेश्याम द्विवेदी एम. ए. , पी.एच-डी.

                               à¤¡à¥‰à¤•à¥à¤Ÿà¤°à¥à¤¸ डे के लिए इमेज परिणाम
आज डाक्टर्स दिवस के अवसर पर मैं सभी डाक्टरों को सादर नमन करते हुए उन्हें बधाई देना चाहता हूं। साथही उनको बहुत ही निकट तथा उनसे अभिन्नता में रहने व जीने के कारण उनके दायित्वों व सुख सुविधा पर भी दृष्टिपात करने की प्रयास कर रहा हूं। भारत में एक जुलाई को चिकित्सक दिवस मनाया जाता है। एक जुलाई को देश के प्रख्यात चिकित्सक डॉ विधान चंद्र रॉय का जन्मदिन और पुण्यतिथि दोनों ही हैं। बिधान चन्द्र राय की स्मृति में ही राष्ट्रीय चिकित्सक दिवस मनाया जाता है। भारत रत्न से सम्मानित बिधान चन्द्र राय देश के प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी होने के साथ-साथ एक चिकित्सक भी थे। आजादी के बाद उन्होंने अपना सारा जीवन पीड़ित मानवता की चिकित्सा सेवा को समर्पित कर दिया।
डॉक्टर्स डे हम ऐसे माहौल में मना रहे है जब धरती के भगवान कहे जाने वाले डॉक्टर और धरती के निवासियों के मध्य अविश्वास की रेखा गहरी होती जा रही है जिसके फलस्वरूप दोनों में मारपीट की घटनाएं नित्य प्रति बढ़ती जा रही है। हाल ही कोलकत्ता व राजस्थान में घटी दुर्भाग्यपूर्ण घटना से पूरे देश के डॉक्टर आंदोलित हो गए और अपना कामकाज छोड़कर सड़कों पर उत्तर आये।
भारत में डॉक्टर्स डे जुलाई महीने की हर पहली तारीख को मनाया जाता है। आज हमें निष्पक्ष भाव से डॉक्टर और मरीज के बीच पनपे अविश्वास की चुनौतियों पर विचार करना होगा। दरअसल इन दिनों डॉक्टरों के लिए सबसे बड़ी चिंता की बात यह है कि कई बार मरीज बेहतरीन इलाज मिलने के बावजूद भड़क जाते हैं और डॉक्टर या हॉस्पिटल को नुकसान भी पहुंचा देते हैं। ऐसा हाल के वर्षों में कई जगह देखने को मिला है। एक डॉक्टर का कार्य मरीजों के हित में सर्वश्रेष्ठ कार्य करना होता है, लेकिन कई बार लाख कोशिश के बावजूद वे मरीज को सन्तुष्ट नहीं कर पाते। कई बार मरीज के परिजन अस्पताल के खर्चे को देखकर भड़क जाते है वह भी तब जब मरीज बजाय ठीक होने के अधिक बीमार होता चला जाता है। उस समय परिजन समझते है अस्पताल अपने खर्चे निकलने में जुटा है और उसे मरीज के स्वास्थ्य की चिंता कम है। मरीज और डॉक्टर के बीच विश्वास की भावना का अभाव है जिसके कारण अस्पतालों में आये दिन मारपीट की घटनाएं होती है। इस समस्या से निजात पाने के लिए जरूरी है कि मरीज डॉक्टर पर विश्वास करें वहीँ डॉक्टर का भी यह कर्तव्य है कि वह मरीज और उसके परिजनों को विश्वास में लेकर ही अपने कार्य को अंजाम दें ताकि किसी भी अप्रिय स्थिति को टाला जा सके
                                         ।डॉक्टर्स डे के लिए इमेज परिणाम
भारत में स्वास्थ्य सेवाओं के हालात ज्यादा बेहतर नहीं है। बड़ी आबादी के लिहाज से न व्यापक अस्पतालों की सुविधा है और न ही डॉक्टर्स की। सरकारी अस्पतालों में जितने डॉक्टर्स हैं, वो भारी दवाब में काम कर रहे हैं। उन्हें 6 घंटे नीद नहीं मिल पाती है वे अपने परिवार व समाज सबसे कटआफ हो जाते है। शिक्षा के लिए भारी धनराशि व समय देने के बावजूद समाज तथा सरकारी तंत्र उन पर एक तरफा जिम्मेदारी तो डालते जाते हैं। उनके सुख व स्वास्थ्य व नींद की जरा सी भी परवाह नहीं करते हैं। यदि लगभग 10 से 12 साल तक कठिन मंेहनत व असीम धन खर्च करके वे इस काविल बन सके हैं कि सामान्यतः 80 से 90 प्रतिशत मामलों को वे अपने व समाज के आम जनता के मनोनुकूल रुप में अच्छे कर पाने में सफल हो जाते हैं तो सोसल मीडिया पर कुछ फालतू समय काटने वाले लोग डाक्टरों की भारी कमाई को देखकर उन्हें व सरकार को कोसते हैं तथा डाक्टरों को शोषक के रुप में प्रचारित करते हैं। कुछ प्रशासनिक अधिकारी तो अनावश्यक अपने पद का रोब दिखाते हुए डाक्टर को जन सेवा को भी बाधित करते हैं और तरह तरह से उन पर मानसिक दबाव डालकर उन पर शासन करने की अपनी हेकड़ी दिखाते हैं। डॉक्टरों का कहना है कई बार हम चाहते हुए भी मरीज के लिए कुछ नहीं कर पाते है क्योंकि सब चीजें हमारे नियंत्रण में नहीं होतीं। कई बार किस्मत साथ नहीं देती। ऐसे में मरीजों को धैर्य से काम लेते हुए हम पर भरोसा करना चाहिए। इस भरोसे के बल हमें अपना बेस्ट देने में मदद मिलती है।
मेडिकल साइंस की उन्नति के साथ जैसे-जैसे मरीजों की उम्मीदें बढ़ रहीं हैं, वैसे-वैसे डॉक्टरों की चुनौतियां बढ़ी रहीं हैं। ऐसे में संसाधनों की कमी डॉक्टरों की राह की सबसे बड़ी बाधा बन रही है। दिन भर में 70 से सौ मरीजों के इलाज का दबाव झेलने वाले डॉक्टर भी अब बीमारियों की चपेट में आने लगे हैं। वे मधुमेह, उच्च रक्तचाप आदि के शिकार हो रहे हैं।
मरीज, समाज व डॉक्टरों के बीच समन्वय घट रहा है। सिमित संसाधन में शत प्रतिशत बेहतर इलाज के साथ मरीज को स्वस्थ करने की परिजनों की आकांक्षा डॉक्टरों पर भारी पड़ती है। मेडिकल विज्ञान काफी आगे बढ़ा है। जांच सुविधाएं महंगी हुईं हैं। मरीजों की संख्या बढ़ रही है। उस हिसाब से डॉक्टर व विशेषज्ञों की कमी है। इससे डॉक्टरों पर दबाव है। विभिन्न जांच इलाज का जरूरी हिस्सा हो गया है। इससे परिजन ठिठकते हैं। कई परिजन तो मर चुके मरीज को भी जिंदा कर देने का दबाव डालते हैं। यह प्रवृति घातक है। इस स्थिति में डॉक्टरों से दुर्व्यवहार किया जाता है। इलाज के लिए विभिन्न तरह जांच की आधुनिक मशीनें आयीं हैं। कई बीमारियां है जिसमें महंगी जांच आवश्यक है। इसकी सुविधा सरकारी स्तर पर नहीं होने से लोगों को लगता है कि डॉक्टर उनसे अनावश्यक खर्च करा रहे हैं। लोगों की स्वास्थ्य शिक्षा भी ठीक नहीं, इससे डॉक्टरों को परेशानी झेलनी पड़ती है।
भारत में बिगड़ी हुई स्वास्थ्य व्यवस्था भी एक बड़ी चुनौती है, यहां 1,050 मरीजों के लिए सिर्फ एक ही बेड उपलब्ध है. इसी तरह 1,000 मरीजों के लिए 0.7 डॉक्टर मौजूद है। आज भी सबसे अधिक मरीज सरकारी अस्पतालों में आते हैं। एक डॉक्टर ओपीडी में सौ से डेढ़ सौ मरीज देख रहा है। कई बीमारियों का इलाज निजी व्यवस्था पर निर्भर है। लोगों के पास उतने पैसे होते नहीं हैं कि वे निजी व्यवस्था में इलाज करा सके। हो यह रहा है कि स्थानीय डॉक्टरों को ही जिम्मेवार माना जा रहा।

क्या किसी शासक ने सबका विश्वास जीत सका है ? डा.राधेश्याम द्विवेदी





विश्वास का अर्थ होता है यकीन करना, निश्चित धारणा बनाना, सच मानना तथा भरोसा करना। वह धारणा जो मन में किसी व्यक्ति के प्रति उसका सद्भाव, हितैषिता ,सत्यता व  दृढता आदि अथवा किसी सिद्धान्त आदि की सत्यता अथवा उन्मत्ता होने के साथ होती है उसे विश्वास कहते हैं। किसी के गुणों आदि के निश्चय होने पर  उसके प्रति उत्पन्न होने वाले मन के भाव को भी विश्वास कहा जाता है। यह एक एंसी मन की धारणा होती है कि जो विषय या सिद्धान्त आदि की सत्यता के संबंध में होती है। विश्वास वह दृष्टि है जो सभी के प्रति समानता का नजरिया पैदा करती है। वह माने किसी को भी पर किसी को अपमानित ना करे। हनुमान चालीसा के 35वें चैपाई में कहा गया है –
और देवता चित्त न धरई,  हनुमत सेई सर्व सुख करई।
इस प्रकार हनुमान को ही विश्वास का सबसे बड़ा मान दण्ड बनाया गया है। अन्य किसी भी देव दनुज या मानव में दिखाई पड़ता नहीं दीख रहा है। त्रेता युग में भगवान राम ने मर्यादा पुरुषोत्तम का रोल बखूबी निभाया है। राज्य का त्याग करके बन को अंगीकार किया था। रावण से बैर करना पड़ा । साथ ही उनके सारे समूल को नष्ट भी करना पड़ा। राम ने खुद की मां से ज्यादा अपनी अन्य माओं को सम्मान दिया था। बन में अपने भाई से ज्यादा अपने मित्र सुग्रीव व विभीषण को महत्व दिया था। जनता के कहने पर पवित्र सीता की अग्नि परीक्षा ली थी। इतना ही नहीं एक सामान्य धोबी के अविश्वास के कारण अपनी गर्भिणी पत्नी सीता का त्याग भी किया था। उनके आचरण व व्यवहार को रामराज की परिकल्पना से नवाजा गया । यद्यपि पूरी जिन्दगी उन्होंने अपने निज के लिए कुछ भी लाभ नहीं स्वीकार किया और प्रजा के जनरंजन के लिए अपना स्नेह दया सखी भाव सब का परित्याग कर दिया था। फिर भी वह प्रजा को पूर्ण संतुष्ट नहीं कर सके ना ही पूर्ण विश्वास कायम कर पाये।
ठीक द्वापर युग में इसी प्रकार भगवान कृष्ण का चरित्र भी रहा। पूरी जिन्दगी प्रकृति व धर्म के संतुलन के लिए वह प्रयास करते रहे। कृष्ण भी कौरवों को मनाने में सफल ना हो सकें महाभारत को ना रोक सके। सर्वशक्तिमान होते हुए भी उनकी बातों पर सबने यकीन कहां की ? पाण्डवों ने यकीन किया और उसका फल पाया भी। पर कौरवों ने यकीन ना करके अपने कुल का विनाश कराया। भारतीय इतिहास और पौराणिक आख्यान इस विश्वास और अविश्वास के कारनामों से भरे पड़े हैं। राजसूय यज्ञ तथा अश्वमेध यज्ञ का विधान भी इन्हीं विश्वास और मान्यता पर टिका हुआ है। भारत के इतिहास को पलटकर देखें तो सारी लड़ाइयों की जड़ भी यही विश्वास अविश्वास के इर्द गिर्द ही घूमती नजर आयेगी। भारत पर अनेक विदेशी आक्रान्ताओं ने बार बार हमला तथा लूटपाट इन्ही मानव मुल्यों के अवमुल्यन के फलस्वरूप किया है। आजादी से लेकर आज तक सत्ता व विपक्ष भी इन्हीं मूल्यों में अपना सब कुछ बरबाद करता रहा है। 2019 के आम चुनाव के अवसर पर भारत के यशस्वी प्रधानमंत्री माननीय मोदीजी ने अपने नारे सबका साथ, सबका विकास में सबका विश्वास को जोड़कर अपने लिए एक और बाध्यता पैदा कर ली है। यह बात तो दिन की तरह साफ है कि न ही मोदी अब तक लगभग 20 करोड़ भारतीय मुसलमानों का विश्वास जीत पाए हैं, न उनकी पार्टी ऐसा कर पाई है। समावेशी भारत के लिए समावेशी विकास का उनका नया नारा कतई खोखला रह जाएगा, अगर देश का दूसरा सबसे बड़ा धार्मिक समुदाय खुद को सत्तापक्ष की ओर से कटा-कटा महसूस करता रहा। भले ही चुनाव बहुमत के सिद्धांत पर वह जीत जाते हों, लेकिन सरकार तभी चलाई जा सकती है, देश तभी आगे बढ़ सकता है, जब सर्वमत के सिद्धांत का पालन किया जाए।
नई लोकसभा में बीजेपी के 303 सांसदों में एक भी मुस्लिम नहीं है...? यही हाल रहा, तो भाजपा को वास्तविक राष्ट्रीय पार्टी कैसे कहा जा सकता है...? हां, भौगौलिक दृष्टि से समूचे भारत में पार्टी की पहुंच बन गई है, लेकिन क्या इसकी सामाजिक पहुंच राष्ट्रीय है ? इस परिप्रेक्ष्य में मोदी जी ने कुछ अहम मुस्लिम मुल्कों - खासतौर से सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात यू ए ई से भारत के रिश्ते हालिया सालों में मजबूत किए हैं। पुलवामा में बीएसएफ जवानों पर हुए आतंकवादी हमले के बाद इन दोनों देशों ने भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव को कम करने में अहम भूमिका अदा की थी.। युएई ने तो भारत में चुनावी प्रक्रिया शुरू हो जाने के बाद मोदी को सर्वोच्च नागरिक सम्मान दिए जाने की घोषणा की । मोदी की मुस्लिमों तक बनाई जा रही इस पहुंच का स्वागत सभी को करना चाहिए, क्योंकि इससे भारत का लोकतंत्र, विकास और राष्ट्रीय अखंडता मजबूत होगी। सच तो यह भी है कि भाजपा विरोधी पार्टियां कुछ हद तक इसके लिए दोषी हैं, और उन्होंने चुनावी फायदों के लिए मुस्लिम वोटबैंक का इस्तेमाल किया है।
इसीलिए, अगर मोदी अपनी नई पारी की शुरुआत सचमुच सबको साथ जोड़कर करने के प्रति गंभीर हैं, तो उन्होंने बहुत-से मुद्दों पर आत्ममंथन करना होगा. उन्हें भाजपा और संघ परिवार को भी उन्हीं की लाइन पर चलने के लिए बाध्य करना होगा। उन्हें खुद आगे बढ़कर मुस्लिम समुदाय के प्रभावी और सम्मानित प्रतिनिधियों को नियमित वार्ताओं के लिए आमंत्रित करना होगा, जिनमें उनके कड़े आलोचक भी शामिल हों, और भारत के लोकतांत्रिक ढांचे में ताकत के विभिन्न स्तरों पर उन्हें भी हिस्सेदारी देनी होगी। शिक्षा, रोजगार और सिविल सेवाओं व सैन्य सेवाओं में समान अवसरों के मामले में मुस्लिमों की भागीदारी कम (सच्चर कमेटी की रिपोर्ट में सामने आई कड़वी सच्चाई) होने के लिए सिर्फ कांग्रेस और अन्य पार्टियों को दोषी करार देने की जगह मोदी को ठोस नीति और ऐसे कदम उठाकर दिखाने होंगे, जिनसे साबित हो सके कि वह मुस्लिमों की तरक्की के लिए कटिबद्ध हैं।
भाजपा को अभी बहुत करना है
लगता है नरेंद्र मोदी खुश तो हैं, पर संतुष्ट नहीं हैं। ऐसा कुछ तो है जिसे वे समझ गए हैं और शायद उनकी पार्टी में दूसरे लोग उसे पकड़ पाने में नाकाम रहे हैं, और वह यह कि दलितों, मुसलमानों, ईसाइयों और बेहद गरीबों के वोट हासिल कर लेना ही पर्याप्त नहीं है, बल्कि उनका भरोसा जीतना भी जरूरी है। वे जानते हैं कि अपने पहले कार्यकाल में वे उनका भरोसा नहीं जीत पाए थे, इसलिए सबका साथ सबका विकास में सबका विश्वास भी जोड़ा। बीजेपी तथा संघ के अनेक बड़बोले नेताओं को मोदी जी की भावनाओं को समझते हुए संयम रखना होगा। तीन सौ तीन सदस्यों में मुसलिम समुदाय के सदस्यों मे इजाफा करना होगा। रोजगार के अवसर बढ़ाने होंगे। खास वर्गों के मन से खौफ खत्म करने के लिए कड़े कदम उठाने की जरूरत है। जब कभी किसी अपराध के लिए सजा न दी जाए तो अपराधी और सजा न देने वालों के खिलाफ कार्रवाई सुनिश्चित की जानी चाहिए। दलित, मुसलिम, ईसाई और गरीबी रेखा से नीचे के तबके के लोगों ने भाजपा के उम्मीदवारों को वोट इसलिए दिया कि कोई और दूसरा उम्मीदवार चुनाव जीतता नहीं लगा और निश्चित रूप से कोई दूसरा उम्मीदवार जीतता हुआ नहीं लग रहा था। यह समझदारी का वोट था, यह विश्वास का वोट नहीं था। इनका भरोसा जीतने के लिए भाजपा को अभी काफी कुछ करना है।



Wednesday, June 26, 2019

ईश्वर के साक्षात्कार करने का एक चक्र और करीब आ गया


सरकार ने तो 60 की उम्र में कर दिया रिटायर
पर विभाग ने अभी तक नही किये पूरे  भुगतान
कहा जाता है कि यह माननीय मोदीजी राज है
भारी बहुमत से पुनः ये आ गयी है सरकार
पर कर्मचारी अधिकारी तो वही पुराने ढर्रे वाले ही हैं
जिन्हें अपने आगे आने वाले लक्ष्य का ध्यान है
पर पुराने रिटायर हुए लोग उनके लिए बोझ हैं
बुजुर्ग भी स्मारकों की तरह देश की धरोहर होते है
इसकी रक्षा व देखभाल करना वर्तमान वालों का धर्म है
ये चूक कहां हो रही कौन इसकी जिम्मेदारी लेगा ?
क्या ईश्वर उदार है कि वह भी अतिरिक्त समय देगा ?
ना भाई ना उसके यहां कुछ भी देर नहीं होती है।
सब काम हर हाल में समय व निश्चित समय पर होते हैं
ईश्वर से साक्षातकार करने का एक चक्र और करीब आ गया है
और हम अभी पुराने मायाजाल में ही उलझे हुए है


Tuesday, June 25, 2019

गूंजेगा भारत माता की जय का नारा


अटल बिहारी वाजपेयी के लिए इमेज परिणाम
माननीय स्वर्गीय अटल विहारी वाजपेयी की प्रस्तुति
आपात्काल के सम्बन्ध में प्रस्तुत है-
अनुशासन के नाम पर अनुशासन का खून
भंग कर दिया संघ को कैसा चढ़ा जुनून
कैसा चढ़ा जुनून,मातृ-पूजा प्रतिबंधित
कुलटा करती केशव-कुल की कीर्ति कलंकित
कह कैदी कविराय, तोड़ कानूनी कारा
गूंजेगा भारत माता की जय का नारा।

Wednesday, June 19, 2019

खेत खलिहान व दिशाओ के रखवाले डीवहारे बाबा डा. राधेश्याम द्विवेदी


                                                    gram devta के लिए इमेज परिणाम
भारतीय परिवेश में आस्था, विश्वास, किसी के आदेश, निर्देश, संहिता या व्यवस्था के अनुसार नहीं चलती है। यह तो अपने पूर्वजों की देखा देखी संकट में अजमाये गये प्रयोगों के आधार पर स्वमेव जन मानस में पनपती है। पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार के गाँव के बाहर किसी पुराने पीपल पेड़ के नीचे कुछ अनगढ़ सा पत्थर, या मिटटी की ढूही बनी देखी जा सकती है। गाँव में जब विवाह की रस्म, किसी बच्चे का जन्म, या मुंडन या अन्य कोई उत्सव होता है तो उस स्थान पर कथा कही सुनी जाती है। साथ ही कुछ भोग प्रसाद का चढ़ावा भी किया जाता है। इसे हमारे ग्राम लोक मेंँ डीह बाबा या डीवहारे बाबा के नाम से जानते हैं। इन्हें ग्राम देवता भी कहा जाता है। यह पूजा किसी शास्त्रीय विधान या कर्मकांड के अंतर्गत नहीं होती है। पर जैसा पंडित या बुजुर्ग करा देते हैं यह हो जाती है। मान्यता यह है कि इस पूजा से अनिष्ट नहीं होता है. और अनिष्ट का भय, सुखद भविष्य की लालसा, और अज्ञात के प्रति जिज्ञासा जरुर देखी जाती है। ईश्वर और धर्म का एक मोटी समाज का एक असरकारक फैक्टर होता है। हर संकल्प के पहले जो मन्त्र पढ़े जाते हैं, उनमे ग्राम देवताभ्यो नमः भी कहा जाता है। इस प्रकार यह प्रथम प्रचलित देवता प्रमाणित हो जाते हैं।
आम जनता की पहुंच आसान
प्राचीन काल में संसार की सुख समृद्धि के लिए त्रिदेवों के अलावा व्यन्तर अथवा लघुदेवों का प्रचलन हुआ था। जब समाज में कोई भारी असमानता होती या पापाचार बढ़ जाता तो ज्यादातर भगवान विष्णु का कोई कोई अवतार की कल्पना की गयी है। कभी कभी मातृ शक्तियां भी प्रकृति धर्म के संतुलन के लिए अवतरित हुई हैं। लक्ष्मी जी भगवान विष्णु का तथा पार्वती जी भगवान शंकर के कार्यों में सहयोग करती थीं। यह भी देखा गया है कि मातृ शक्तियां मूल देवों की अपेक्षा जल्दी प्रभावित होकर भक्तों के संकट का निवारण करती हैं। इस कारण यह जन मानस में बहुत ही लोकप्रिय भी होती जा रही है। जब कोई छोटी या समान्य घटना जाता या मूल उच्चस्थ देव किसी अन्य कार्य में व्यस्त हो जाता  था। तब उनके गण गणिकाएं अपने अपने स्वामी द्वारा प्रदत्त शक्तियों के बल पर संसार के सदानुकूल संचालन में सहयोग करते थे। शक्ति हमेशा पूज्य रहे हैं, चाहे जैसी भी हो-तपस्या द्वारा देवताओं की कृपा प्राप्त की है। संसार में कई लोक हैं जिनके देवी-देवता अलग-अलग लोक में रहते हैं तथा जिनकी दूरी अलग-अलग है। नजदीकी लोक में रहने वाले देवी-देवता शीघ्र प्रसन्न होते हैं, क्योंकि लगातार ठीक दिशा, समय, साधन का प्रयोग करने से मंत्रों की साइकल्स उस लोक में तथा ईष्टदेव तक पहुंचती है जिससे वे शीघ्र प्रसन्न होते हैं तथा साधक की मनोकामना पूर्ण करते हैं।

                        gram devta के लिए इमेज परिणाम
जादुई शक्तिवाला यक्ष
यक्ष गन्धर्व किन्नर विद्याधरी ये सब उपदेवताओं की श्रेणी में आते है। यक्षों एक प्रकार के पौराणिक चरित्र होता हैं। यक्ष का उल्लेख ऋग्वेद में हुआ है। यच सम्भवत यक्ष का ही एक प्राकृत रूप है। अतएव यक्ष का अर्थ जादू की शक्तिवाला और निस्सन्देह यक्षिणी है। यक्षों को राक्षसों के निकट माना जाता है, यद्यपि वे मनुष्यों के विरोधी नहीं होते, जैसे राक्षस होते है। माना जाता है कि प्रारम्भ में दो प्रकार के राक्षस होते थे एक जो रक्षा करते थे वे यक्ष कहलाये तथा दूसरे यज्ञों में बाधा उपस्थित करने वाले राक्षस कहलाये। यक्ष का शाब्दिक अर्थ होता है जादू की शक्ति। हिन्दू धर्मग्रन्थो में एक अच्छे यक्ष का उदाहरण मिलता है जिसे कुबेर कहते हैं तथा जो धन-सम्पदा में अतुलनीय थे। यक्षों के राजा कुबेर उत्तर के दिक्पाल तथा स्वर्ग के कोषाध्यक्ष कहलाते हैं। एक यक्ष का प्रसंग महाभारत में भी मिलता है। जब पाण्डव दूसरे वनवास के समय वन-वन भटक रहे थे तब स्वयं धर्मराज की एक यक्ष के रुप में उनकी भेंट हुई जिसने युधिष्ठिर से अनेक गूढ़ यक्ष प्रश्न किए थे। यक्ष तथा भैरव भी हमारे नजदीकी वातावरण में रहते हैं।
कुवेर का सहयोगी यक्ष
लक्ष्मी जी जहां ध्यान नहीं दे पाती तो वहां कुबेर देव अपना कार्य संचालित करते थे। कुवेर के सहयोगियों को यक्ष कहा जाता था। इसकी श्रेणी में यक्षिणी, योगिनी, अप्सरा, किन्नरी आते हैं। एक साधना कर्ण-पिशाचिनी भी होती है जिससे हम भूत भविष्य का ज्ञान कर सकते हैं तथा दूसरों को बताकर अचंभित किया जा सकता है। यक्षिणियां कई वनस्पतियों के नाम से भी जानी जाती हैं। अप्सराएं 8 होती हैं तथा 8 ही किन्नरियां होती हैं। इनका मुख्य कार्य धनप्राप्ति कराना होता है, जो इन्हें प्रसन्न कर प्राप्त कर सकता है। योगिनियां भी 8 होती हैं। कई बार प्रयास करने पर भी ये आती नहीं हैं तो इन्हें कुट्टन मंत्रों द्वारा जबरदस्ती भी बुलाया जा सकता है। यदि यह नहीं भी सामने आएं, तो भी जीवन के कार्यों में सफलता दिलवाती देती हैं।
कार्तिक पूर्णिमा को विशेष आयोजन
कार्तिक पूर्णिमा की रात्रि को यक्ष जाति के लोग अपने सम्राट कुबेर के साथ विलास करते हैं और अपनी यक्षिणियों के साथ आमोद-प्रमोद भी करते हैं। सर्वत्र हर्षोल्लास प्रेमोन्माद की वर्षा करती रहती हैं। इसलिए इस रात्रि को यक्ष रात्रि कहा जाता है। वराह पुराण वात्स्यायन के कामसूत्र में भी इसका उल्लेख यक्ष रात्रि के रूप में किया गया है। कालांतर में इस अवसर पर यक्षाधिपति कुबेर के पूजन की परंपरा शुरू हुई। उत्तरी भारत के अनेक गांवों में यक्ष वृक्ष, यक्ष चैरा के प्रमाण आज भी मिलते हैं। काशी का लहुराबीर इसी तरह के नाम का बोधक है। इसका वर्तमान एर्व व्यापक रूप डीह या डिवहारे बाबा और जाख-जाखिनी की पूजा के रूप में आज भी गांवों में प्रचलित है। पर्वतीय जातियों में अब भी यक्ष पूजा की परंपरा है।
 खुदाई में मिली अनेक प्रतिमाएं
विभिन्न स्थानों पर की गई पुरातात्विक खुदाई में कुषाण काल की अनेक प्रतिमाएं मिली हैं जिसमें यक्षपति कुबेर और लक्ष्मी को एक साथ दिखाया गया है। कुछ प्रतिमाओं में कुबेर को अपनी पत्नी इरिति के साथ दिखाया गया है। ऐसा प्रतीत होता है कि प्राचीन काल में कुबेर और उनकी पत्नी इरिति का ही पूजन किया जाता रहा होगा। कालांतर में इरिति का स्थान लक्ष्मी ने ले लिया और आगे चलकर कुबेर के स्थान पर गणेशजी को प्रतिष्ठित कर दिया गया। कुछ स्थानों पर आज भी गणेश-लक्ष्मी के साथ कुबेर इंद्र की पूजा की जाती है। यक्ष रात्रि के साथ लक्ष्मी के जुडने का कारण धन की देवी तथा इसी दिन विष्णु से उनके विवाह का होना कहा जाता है। देखा जाय तो कुबेर लक्ष्मी की प्रकृति में समानता अधिक है। कुबेर धन के देवता हैं और लक्ष्मी धन की देवी हैं। अंतर केवल यह है कि कुबेर की मान्यता यक्ष जाति में है और लक्ष्मी की देव मानव जाति में। कालांतर में जब हमारे यहां विभिन्न जातियों संस्कृतियों का समन्वय हुआ तो आपस में एक-दूसरे की मान्यताओं को स्वीकार करना स्वाभाविक था। इसलिए कुबेर और लक्ष्मी को एक ही रूप मानकार उनकी पूजा की जाने लगी।
कुबेर को छोड़ लक्ष्मी के साथ गणेश की निकटता बड़ी
सांस्कृतिक प्रवाह में जब शैव संप्रदाय का महत्व समाज में बढने लगा तो गणेशजी की प्रतिष्ठा बढ़ी। गणेशजी ऋद्धि-सिद्धि के देवता माने जाते हैं। ये दोनों उनकी पत्निया के रुप में पूजी जाती हैं। कुबेर देव केवल धन के ही अधिपति हैं। लक्ष्मी जी केवल धन की नहीं, यश, सुख कृषि आदि की देवी हैं, इसलिए लक्ष्मी के साथ गणेश की निकटता मानी जाने लगी। मत्स्यपुराण के अनुसार स्वयं कुबेर ही वाराणसी में आकर अपने यक्ष स्वभाव को छोड़कर भगवान शिव के गणनायक और मंगल मूर्ति गणेश बन गए। गणेश जी के गनानन स्वरूप को छोड़ दिया जाय तो उनकी शेष आकृति कुबेर से काफी मिलती है। वही लम्बोदर और स्थूल शरीर गणेश जी का भी है और   कुबेर का भी।
                          gram devta के लिए इमेज परिणाम
दिव्य ताकतों वाली ये शक्तियां
जो लोग बचपन से लेकर शहरों में पले-बढ़े हैं, उन्हें डीह बाबा, देवी माई का चैरा या बरम (ब्रह्म) देवता की बात नहीं समझ में आएगी। लेकिन गांवों के लोग इन दिव्य ताकतों से अच्छी तरह परिचित होंगे। डीह बाबा अक्सर गांव की चैहद्दी पर बिराजते हैं। अगर आप गांव से बाहर कहीं जा रहे हों और गलती से उन्हें नमन करना भूल गए तो वो आपको रास्ता भटका सकते हैं। आपका कार्य वाधित भी कर सकते हैं। यदि उनको सम्मान के साथ स्मरण कर लिया तो कार्य पूर्ण होने की संभावना बढ़ जाती है। साथ ही आपमें एक आत्मविश्वास भी बन जाता है। जो आपको सकारात्मक उर्जा का संचरण कर सकता है। बरम बाबा भी बेहद लाभदायक या खतरनाक दोनों रुप में होते हैं। इसी तरह पानी में डूबकर मरे अविवाहित नौजवान भी आते हैं जो बुडुवा कहलाते हैं। ये भी लोक में तरह तरह के होनी अनहोनी के प्रेरक बन जाते हैं। इन सभी छोटी मोटी शक्तियों को कुछ छोटे मोटे कार्य पूजा से शान्त या अनुकूल किया जा सकता है। इनकी अवहेलना नुकसानदायी हो सकता है। इनकी कृपा से व्यक्ति समाज में नई स्फूर्ति का संचरण होता है। अतः इन्हें नजरन्दाज नही करना चाहिए। यदि गल्ती हो भी जाय तो उसे सुधारा भी जा सकता है। ये कट्टर स्वभाव के कत्तई नहीं होते अपितु अपने भक्तों पर इनकी कृपा समयानुकूल होती रहती है।