Wednesday, May 31, 2017

स्वतंत्र भारत में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की विकास यात्रा - डा. राधेश्याम द्विवेदी



(भा. पु. स. परिचायिका सिरीज - 4 समापन किस्त )
26 जनवरी 1950 को लागू भारतीय संविधान में पुरातत्व विषय को समवर्ती सूची में रखा गया है। इस पर केन्द्र राज्य दोनों का नियंत्रण रहने लगा। केन्द्र सरकार की ओर से भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण राष्ट्रीय महत्व के स्मारकों का देखरेख तथा संरक्षण का कार्य देखने लगा।राज्य तथा स्थानीय महत्व के स्मारकों का देखरेख तथा नियंत्रण राज्य सरकारें करने लगीं। जहां राज्य सरकार का पुरातत्व विभाग अस्तित्व में नहीं था वहां केन्द्र सरकार उसके विभागीय संगठन में सहयोग भी प्रदान की है। एएसआई ने आजादी के बाद विभिन्न स्वरूपों में काफी विकास किया।
30 जून 1950 को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के महानिदेशक पद से एन.पी. चक्रवर्ती सेवामुक्त हुए। माधोस्वरुप वत्स उनके उत्तराधिकारी नियुक्त हुए। इसी समय 1951 में भारतीय संसद ने प्राचीन एतिहासिक संस्मारक तथा ध्वंशावशेष अधिनियम परित किया। इसके अन्तर्गत 450 स्मारकों को राष्ट्रीय सूची में समाहित किया गया। मार्च 1953 में अमलानन्द घोष भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के महानिदेशक बनें। देशी राजाओं के पुरातत्व विभाग भी केन्द्र में समाहित हुए। प्राचीन एतिहासिक संस्मारक तथा पुरातत्वीय स्थल अवशेष अधिनियम 1958 पुनः संशोधित होकर लागू हुआ। 1959 में इसकी नियमावली बनाकर अधिनियम को और व्यवहारिक बनाया गया। 1972 में इसका द्विभाषी प्रथम संस्करण तथा 1979 में द्वितीय संस्करण संशोधनों के सहित प्रकाशित किया गया। इस समय कालीबंगा का अन्वेषण एवं उत्खनन हुआ था। संपूर्ण देश के सर्वेक्षण की पहल की रूपरेखापुरातात्विक अवशेषों के ग्राम-से-ग्राम सर्वेक्षणके अंतर्गत तैयार की गई। इससे भारत के सुदूर इलाकों से बड़े पैमाने पर पूर्व एतिहासिक से मध्यकालीन इतिहास के स्थलों की खोज हो पाई। नागार्जुनकोंडा घाटी में पुरातात्विक अवशेषों की खोज का महत्वपूर्ण कार्य सफलतापूर्वक किया गया था। एक आइलैंड संग्रहालय में सुरक्षित अवशेषों को प्रदर्शनी के लिए रखा गया है। घग्गर नदी और गुजरात के सूखे मैदानों में किए गए सर्वेक्षणों से प्रारंभिक, परिपक्व और बाद के हड़प्पा स्थलों की खोज हो पाई। इनमें धौलवीर, लोथल, बनवाली और राखीगढ़ी प्रमुख स्थल है। 1992 में उक्त अधिनियम में गजट नोटीफिकेशन द्वारा स्मारकों के 100 मीटर परिधि को प्रोटेक्टेड (प्रतिनिषिद्ध क्षेत्र) तथा उससे 200 मीटर बाहर की परिध् को प्राहिविटेड एरिया (विनियमित क्षेत्र) घोशित किया गया। इस क्षेत्र पर खनन तथा पुनः निर्माण पर रोक लगा दिया गया। केवल अनुमति प्राप्तकर सीमित निर्माण के नियम की प्रक्रिया अपनाई जाने लगी। पुनः 1998 में एक राजपत्र द्वारा प्रत्येक मण्डल के अधीक्षण पुरातत्वविद् को उस क्षेत्र का सम्पत्ति अधिकारी  घोषित किया गया। प्रति शुक्रवार को निःशुल्क रहने वाले स्मारक को अब समाप्त कर दिया गया। ताज महल को इस दिन बन्द करके केवल नमाज के लिए दोपहर 12 से  2 बजे तक खोला जाने लगा।
2000 के एक राजपत्र से भारतीयों के लिएअ’ श्रेणी के स्मारकों के लिए रु. 10 तथा विदेशियों के लिए 5 यू. एस. डालर या 250 भारतीय रुपये प्रवेश शुल्क तथा भारतीयों के लिएब’ श्रेणी के स्मारक के लिए रु. 5 प्रवेश शुल्क, विदेशियों के लिए 2 यू. एस. डालर या 100 भारतीय रुपये प्रवेश शुल्क निर्धारित हुए।अ’ श्रेणी में 14 तथा श्रेणी में 58 स्मारक रखे गये।
2010 के प्राचीन एतिहासिक संस्मारक तथा स्थल अवशेष (संशोधन एवं विधिमान्यकरण) अधिनियम 2010 में संशोधन हुआ। इसमें दण्ड की मात्रा बढ़ाया गया। 3 माह के कारावास को 2 वर्ष 5000 रुपये का अर्थदण्ड एक लाख रुपये संशोधित किया गया। इस अधिनियम में धारा 20(एफ) को जोड़ते हुए राष्ट्रीय संस्मारक प्राधिकरण का स्वतंत्र गठन किया गया।
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण का प्रकाशन :- व्रिटिस काल में प्रकाशन की स्थिति वहुत अच्छी थी। विदेशी अधिकारी विशेषज्ञ हर छोटी से बड़ी सूचनाओं को आम जनता तथा जिज्ञासुओं को आवश्यक रुप में साझा करते थे। नयी खोज विश्लेषण, यात्रा वृतान्त मूर्ति कला संरक्षण तथा सभी वैज्ञानिक तकनीकि को विभिन्न प्रकाशनों के माध्यम से जनता के सामने प्रस्तुत किये जाते थे। द्वितीय विश्व युद्ध तथा भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलनों के दौरान वित्तीय संकट के दौरान यह क्रम बाधित भी हुआ परन्तु बाद में सामान्य स्थिति होने पर पुनः प्रकाशन शुरु हुए हैं। आजादी के बाद यह वाधित क्रम पुनः नियमित हो गया था। 1953-54 सेइण्डियन  आर्काजाली रिव्यू’ वार्षिक रुप में नियमित प्रकाशन हो रहा है। 1946 सेएनसेंट इण्डिया’ नामक शोध पत्रिका का अनियमित प्रकाशन हुआ है। इसके 22 अंक निकल चुके इैं। इसी अवधि में 1961 भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने अपनी स्थापना के शताब्दी वर्ष भी मनाया है और विशेष प्रकाशन भी प्रकाशित हुए। 1972 में पुरावशेष और बहुमूल्य कलाकृति अधिनियम तथा 1973 में इसकी नियमावली, 1975 में इसकी द्विभाषी संस्करण प्रकाशित हुआ। इसके आधार पर सरकार कलाकृतियों और माडलों का पंजीकरण, अर्जन तथा कलाकृति ना होने की स्थिति में विदेशों में निर्यात के लिए अनापत्ति प्रमाणपत्र निर्गत करने लगी।
अद्यतन स्थिति :- भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण 24 सर्किल के जरिए स्मारकों की रक्षा और उसका संरक्षण करता है। हाल ही में प्रशासनिक कार्य को आसान बनाने हेतु लद्दाख में मुख्यालय की स्थापना के साथ एक मिनी सर्किल स्थापित किया गया। इसके अतिरिक्त एएसआई में 6 उत्खनन शाखाएं, 2 मंदिर सर्वेक्षण परियोजनाएं, एक भवन सर्वेक्षण परियोजना, एक पूर्व ऐतिहासिक शाखा, दो एपीग्राफी शाखाएं और एक बागबानी शाखाएं हैं जिसके जरिए अलग-अलग क्षेत्रों में विभिन्न अनुसंधान और अन्य कार्य किए जाते हैं।
संरक्षित स्मारक :- भारत में एएसआई ने 3677 राष्ट्रीय संरक्षित स्मारकों की सुरक्षा, संरक्षण और पर्यावरण संबंधी उन्नयन संबंधी गतिविधियों में भी महत्वपूर्ण प्रगति की है। इस संस्थान की प्रतिष्ठा की बदौलत इसे अफगानिस्तान, कंबोडिया, लाओस इत्यादि जैसे अन्य देशों में स्मारकों के संरक्षण में भागीदारी करने का अवसर मिला। एएसआई की पुरालेख शाखा ने दस्तावेजी करण के लिए विभिन्न स्थलों के सर्वेक्षण में निरंतर योगदान किया और शिलालेखों की छाप ली, जिसकी बदौलत विभिन्न भाषाओं और लिपियों में लगभग 80 हजार शिलालेखों की खोज और नकल में मदद मिली। पिछले कई दशकों से एएसआई का सर्वांगीण विकास होता गया है। जिसमें एक महानिदेशक, कई अपर मकानिदेशक , संयुक्त महानिदेशक 5 क्षेत्रीय निदेशक कई निदेशक, दो वेतन एवं लेखा कार्यालय,एक पुरातत्व संस्थान एक जलीय पुरातत्व विंग,तथा अनेक शाखाओं के उपशाखायें स्थापित हुई हैं।
विश्व विरासत स्मारक :- एएसआई हमारे अतीत को बचाने और उसके संरक्षण का संदेश लोगों तक फैलाने की कोशिश कर रहा है। इससे स्थानीय पर्यटन, स्थानीय लोगों को रोजगार का अवसर तथा लोगों में अपने समृद्ध विरासत के प्रति गर्व की भावना पैदा होगी। यूनेस्को के विश्व विरासत सम्मेलन का एक सक्रिया हिस्सा बनने के बाद यूनेस्को में भारत की अब तक 28 विश्व विरासत संपत्ति को शामिल किया गया है, जिसमें से 19 एएसआई के अंतर्गत हैं। ये स्थल प्रागैतिहासिक काल से उपनिवेशी काल तक मंदिर , मस्जिद, मकबरे, कब्रिस्तान, किले ,महल, कुंए, गुफाएं,स्थापत्य, टीले तथा प्राचीन अवशेष हैं।
एएसआई की 150वीं वर्षगांठ :- एएसआई ने 1961 में उसकी स्थापना के सौ वर्ष पूरे होने के उपलक्ष में संगोष्ठी, सम्मेलन, प्रदर्शनी, फिल्म आदि का आयोजन किया था। 19 दिसम्बर 2011 को एएसआई की स्थापना की 150वीं वर्षगांठ मनाई गई है। इसमें दो डाक टिकटें तथा लगभग एक दर्जन प्रकाशनों का विमोचन भी हुआ है। एनसेंट इण्डिया का नया अंक पुनः नये कलेवर में शुरु हुआ है। 24 तिलक मार्ग तथा नोयडा में पुरातत्व के नये कार्यालय भवन का शिलान्यास भी हुआ है। एएसआई ने विभिन्न गतिविधियों का आयोजन भी की है, जो कि इस प्रकार हैं-
1. सालभर कार्यक्रम आयोजित करने के लिए दिसंबर 2011 में उद्घाटन समारोह।
2. दिसंबर, 2011 में प्रतिष्ठित पुरातत्वविद् लॉर्ड कोलिन रेनफ्रियू का विशेष
3. चार अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन
. दक्षिण एशिया में बौद्ध धर्म का पुरातत्व
. दक्षिण एशिया की पूर्व एग्रो-पेस्टोरल संस्कृति
. हड़प्पा पुरातत्व और
. मध्यकालीन वास्तुकला
4. स्मारक डाक टिकट, पदक, संग्रह प्रदर्शनी आदि जारी करना।
5. विशेष प्रकाशन, मोनोग्राफ और पुस्तकें
6. एएसआई जर्नल, प्राचीन भारन-एक नई श्रृखंला का प्रकाशन।
7. एएसआई के 10 पुरातत्व संगहालयों का उन्नयन।
8. केंद्रीय पुरातत्व संग्रह को उसके मौजूदा स्थान पुराना किला से लाल किले में  स्थानांतिरत करना।
9.राष्ट्रीय और क्षेत्रीय स्तर पर प्रदर्शनियों का आयोजन करना।
एएसआई की सामान्य नियमित गतिविधियां :- भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की मुख्य गतिविधियां इस प्रकार हैं -
1. पुरातत्व अवशेषों और उत्खनन का सर्वक्षेण
2. केंद्रीय संरक्षित स्मारकों, जगहों और अवशेषों का रख-रखाव और संरक्षण।
3. पुरातत्ववेत्ता अवशेषों और स्मारकों का रसायनिक संरक्षण
4. स्मारकों का वास्तुकला सर्वेक्षेण।
5.  एपीग्राफीकल अनुसंधान और न्यूमिसमेटिक अध्ययनों का विकास।
6. स्थल संग्रहालयों की स्थापना और पुनर्गठन।
7. विदेशों में अभियान।
8. पुरातत्व में प्रशिक्षण।
9. तकनीकी अध्ययन रिपोर्ट और अनुसंधान कार्यों का प्रकाशन।
एएसआई के स्मारकों और विरासत पर डॉक्यूमेंट्री :- इस तरह के आयोजन से लोगों और आम जनता को हमारे अतीत के संरक्षण की प्रासंगिकता को समझने में मदद मिलेगी। उनसे अपने आस-पास के स्मारकों और स्थलों का बेहतर संरक्षण और रख-रखाव करने तथा एएसआई की मदद करने का आग्रह किया जा सकता है।